कटाक्ष
July 31 and officers : खाकी के मोटू पतलू की धूम,सीईओ मेरा दोस्त मैं करूंगा होस्ट..60 दिन.. 90 विधानसभा और 75 प्लस,तीन महीने का था वादा रकम मिलते ही बदल गया इरादा..
मदिरा प्रेमियों में खाकी के मोटू पतलू की धूम
अक्षय कुमार के गब्बर इज बैक का संवाद ” रिश्वत नारियल जैसा हो गया है… हर काम से पहले दोनों का चढ़ावा जरूरी है” ये पंक्ति चौकी के दो नवाब पर फिट बैठती है। कार्टून चैनल में मोटू पतलू धूम मचाने के बाद अब खाकी के मोटू पतलू लोगों पर धूम मचा रहे है। चौकी के मोटू पतलू की जोड़ी का दहशत शोले के गब्बर सिंह जैसा है। तभी तो मदिरा प्रेमी जब बोतल का ढक्कन खोलते है तो कंपनी देने वाले को कहते है जल्दी पियो भाई मोटू पतलू आ जाएगा..!
वैसे इस जोड़ी के बदौलत ही चौकी इंचार्ज के चार्ज होने की बात भी खाकी के गलियारों में होती रहती है। सूत्र बताते हैं कि एक बार तो मोटू की धमक से एक मदिरा प्रेमी भाग रहा था तो जनाब भी बाइक में उसका पीछा करते हुए कह रहे थे…भाग जितना भागना है आखिर थकेगा तो रुकेगा ही…! कहा तो यह भी जा रहा है कि ये जोड़ी हर दिन होली और हर रात दीवाली मना रही है। मनाए भी क्यों न कमाऊ पुत्र की चौकी हो या थाना या घर सब जगह उनकी सब गलती माफ रहती है।
वैसे तो टीपी नगर इलाके में वैध और अवैध कामों की भरमार है। सो इनका फायदा उठाते हुए ये जोड़ी पब्लिक को कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है। और जो इनके रडार से बचना चाहते हैं वे इनकी खातिरदारी कर अपनों को पुलिस के झंझट से दूर रख पाते हैं। मतलब साफ है आप टीपी नगर में है और आसपास कोई शराब पी रहा है तो खाकी के खिलाड़ियों से बचकर रहना नहीं तो मोटू और पतलू आ जाएगा…!
सीईओ मेरा दोस्त मैं करूंगा होस्ट..
जिले के एक जनपद सीईओ का दोस्त इन दिनों होस्ट कर रहा है। बात कुछ यूं हैं कि जनाब ने एक रेत कारोबारी को कमांड देते हुए कहा कि मैं सीईओ का दोस्त बोल रहा हूँ… और फ्री में रेत की डिमांड करने लगा। अब रेत कारोबारी तो पुलिस को लिफ्ट न दे तो दोस्त किस खेत की मूली है। सो उन्होंने ने भी अपने लहजे में रेत देने से मना कर दिया। इससे दोस्त का तिलमिलाना तो बनता है पर अधिकारी के साथ ही दोस्त को भी नजराना समझ से परे है।
वैसे तो जनपद की कुर्सी ही अपंग हो गई है। क्योंकि, पहले भी साहब को बैसाखी यानी होस्ट करने वाले की जरूरत थी और अब दोस्त को भी होस्ट की जरूरत है । तभी तो साहब के दोस्त होस्ट बनकर जनपद के कार्यों में दखल दे रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि साहब के दोस्त अक्सर चैम्बर में बैठते हैं और सचिवों को निर्देश देते हैं।
वैसे पंचायत की पंचायती के लिए एक विश्वसनीय दोस्त रखना तो पड़ता है। क्योंकि, सोमवार को पब्लिक की शिकायतें, मंगलवार को टीएल और बुधवार फील्ड विजिट या मीटिंग के बाद गुरुवार को दफ्तर का काम और शुक्र, शनि को आराम तो एक सपोर्टर तो बनता है। लेकिन, तरकारी वाले कामों में.. सरकारी में नहीं..! खैर “सैय्या भय कोतवाल तो डर काहे का”
60 दिन.. 90 विधानसभा और 75 प्लस
चुनाव से 6 माह पहले पीसीसी चीफ बदल गए, मोहन मरकाम मंत्री गए और उनकी जगह दीपक बैज को कांग्रेस की बागडोर थमा दी गई। ये फैसला राजीव भवन में लिया गया या दिल्ली दरबार में ये सवाल उतना गहरा नहीं है जितना ये कि 60 दिन.. 90 विधानसभा और 75 प्लस के लक्ष्य को कांग्रेस कैसे साध पाएगी। हालांकि दीपक बैज आलाकमान, सीएम और तमाम वरिष्ठ नेताओं को भरोसे में लेकर इस लक्ष्य को पूरा करने की बात तो जरूर कर रहे हैं पर ये उतना आसान नहीं है।
बैज ने ये भी कह रहे हैं कि मेरी व्यक्तिगत कोई टीम नहीं है। कांग्रेस की टीम है, मोहन मरकाम ने अच्छी टीम बनाई है। जरूरत पड़ी तो थोड़ा बहुत फेरबदल की गुंजाइश बन सकती है। यानि संगठन में बदलाव हो सकता है। हालांकि कांग्रेस में सतही तौर पर सब कुछ सामान्य दिखाने के प्रयास किए जा रहे हैं मगर सत्ता और संगठन में हुए ये बदलाव कहीं न कहीं कांग्रेस को परेशान करने वाले हैं। सबसे बड़ी चुनौती चुनाव घोषणा पत्र समिति के चेहरे को लेकर हो रही है।
डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव पहले ही चुनाव घोषणा पत्र समिति की जिम्मेदारी लेने से इंकार कर चुके हैं। इस बार जय वीरू की जोड़ी कुछ असहज नजर आ रही है। ऐसे में कांग्रेस के नए दीपक पार्टी को सत्ता का रास्ता दिखाने में कहां तक रोशनी फैला पाएंगे, ये आने वाले दिनों में सामने आ पाएगा। जो भी हो 60 दिन.. 90 विधानसभा और 75 प्लस का लक्ष्य कांग्रेस के लिए चुनौती साबित होगा या फिर आला कमान का फैसला सही साबित होगा इसके लिए अभी इंतजार करना होगा।
तीन महीने का था वादा रकम मिलते ही बदल गया इरादा..
आत्मानन्द स्कूल और शिक्षा विभाग के स्कूलों के निर्माण को तीन महीने में तैयार करने का वादा करने वाले निर्माण एजेंसी का रकम मिलते ही इरादा बदल गया है। टेण्डर तो लगा लेकिन काम शुरू करने में जुगाड़ तंत्र की वजह से लेट लतीफी हो गई। लिहाजा आत्मानन्द स्कूल भी पुराने स्कूलों में संचालित हो रहे हैं। ट्राईबल की तिकड़ी बताती है बड़े साहब के रहमो करम पर काम तो मिल गया पर मॉनिटरिंग के अभाव में आत्मानन्द की आत्मा मिशन से भटक गई है।
अब बात अगर शिक्षा विभाग के नए बिल्डिंग की करें तो उसका हाल और बेहाल है। बड़े साहब के पर्सनल इंटरेस्ट की वजह से काम बिना सेटअप वाले विभाग को सौप दिया गया। अब बिना टेक्निकल टीम के भला काम हो तो हो कैसे..! सो स्कूल खुलने के बाद अब जाकर टेण्डर लगा है। सीधी सी बात है जुलाई में टेंडर, अगस्त में एग्रीमेंट और दिसम्बर से जनवरी में काम होगा पूरा और छात्रों का सपना अधूरा रह जाएगा ..!
चर्चा है कि ट्राईबल की सेटिंग से रकम तो मिली है। लेकिन, ड्रीम प्रोजेक्ट अब भी अधूरा है। निर्माण कार्यों की कछुआ चाल से अफसरों का भी हाल बेहाल है। स्कूल निर्माण के काम को देखकर टीचर कहने लगे हैं तीन महीने का था वादा रकम मिलते ही साहब का बदल गया है इरादा..!