
खाकी के रंग एक से भले दो के संग
सुना तो आपने भी होगा एक से भले दो। कभी फिल्मी दुनिया में संगीतकारों की जोड़ियां धूम मचाती थीं। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, शंकर-जयकिशन, नदीम-श्रवण..नाम लेते ही सफलता अपने आप पीछे-पीछे चली आती थी।
पर किसने सोचा था कि संगीत की यह परंपरा खाकी की दुनिया में भी लागू हो जाएगी…? फर्क बस इतना है कि वहां सुर लगते थे, यहाँ “सुरा-सिक्का” चलता है। ये जोड़ी धुन नहीं, बल्कि धुआंधार वसूली का प्रदर्शन करती है। अवैध कारोबारियों के बीच उनका नाम इतना मान्य है कि जैसे ही वसूली की चर्चा होती है, इन दोनों का नाम अपने आप जुड़ जाता है।
ताज़ा किस्सा कबाड़ कारोबार से जुड़ा है। सूत्रों की मानें तो डायरेक्ट कट वसूली का तंत्र लंबे समय से चल रहा था। मगर जब प्रभारी की इमेज कबाड़ में बदलने लगी, तब साहब ने ऐसी रणनीति लगाई कि सांप भी बच जाए और हिस्सेदारी की लाठी भी घिसे नहीं।
बात यह है कि अब साहब की हिस्सेदारी की वसूली भी चौकी के दो चौकीदार ही संभाल रहे हैं। दोनों खुद को चौकी का सबसे प्रभावी और असली ताकत बताते फिरते हैं। कारोबारियों के बीच भी यह बात फैल चुकी है कि सीधे प्रभारी तक जाने की जरूरत नहीं, क्योंकि इन दो राही के बिना चौकी में कोई रास्ता खुलता नहीं।
चौकी में इस दिव्य चमत्कारी व्यवस्था पर जनचर्चा जोरों पर है..“खाकी का रंग भले एक हो, पर खेल दिखाने वालों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि अब पहचानना मुश्किल है कि कानून किसके हाथ में है और वसूली किसके!”
चांदी के चमचे और चमचों की चांदी
शिक्षा विभाग इन दिनों शिक्षा से ज़्यादा चमचों की परवरिश में लगा है। स्थिति यह कि विभाग में ज्ञान से ज्यादा गांधी के चित्र की कद्र है.. जेब में हों तो आपकी विनती भी नीति बन जाती है, और न हों तो आप बस भीड़ में गुम एक शिक्षक। राजाओं के जमाने में भाट-चाटुकार दरबार की शान बढ़ाते थे, आज वही परंपरा “अपग्रेड” होकर अफसरों के दरबार में डिजिटल रूप में ढोल-नगाड़ों की जगह मोबाइल की घंटियां बजाती हैं और हाजिरी चरणों में नहीं, “रिचार्ज” में लगती है।
सूत्र बताते हैं कि धन्ना सेठों के नगर में पदस्थ विकासखंड शिक्षा अधिकारी ने इस परंपरा को नया विस्तार दे दिया है। बड़े साहब के चरणों में अटूट आस्था रखने वाले इस अधिकारी के लिए चाटुकारिता अब प्रशासनिक कौशल का हिस्सा बन चुकी है।
यूक्तियुक्तकरण के दौरान अनियमितताओं की शिकायत पर अधिकारी का तबादला दूसरे जिले कर दिया गया, लेकिन इसके बाद भी वे कुर्सी से हटने को तैयार नहीं हैं। विभाग में उन्हें “कमाऊ पुत्र” के नाम से भी पुकारा जाता है। यही कारण है कि ट्रांसफर के बावजूद वे उसी पद पर बैठे हुए हैं और अलग-अलग अफसरों को अपने स्तर पर रिचार्ज करा रहे हैं। वैसे तो बीईओ के कुर्सी के असली हकदार भी उसी दफ्तर में बैठकर डीईओ के आशीर्वाद का इंतजार कर रहे है। एक दफ्तर में दो अफसर को पदस्थ देखकर शिक्षक मुस्कुराते हुए कह रहे एक फूल के दो माली और प्रभारी साहब कर रहे हमारी जेबें खाली..!
जनचर्चा यह भी है कि साहब रिचार्ज तो औरों को करते हैं लेकिन स्वयं ही फूल चार्ज हो जाते हैं।
फ्यूज बल्ब लगे हाथ, कनेक्शन की सीबीआई कर रही तलाश…
अक्सर लोग कहते हैं कि फॉल्ट पकड़ना हो तो पहले फ्यूज को हाथ लगाना पड़ता है। एसईसीएल में हुए मुआवजा घोटाले की जांच भी अब इसी मोड़ पर पहुंच गई है। सीबीआई की टीम जिस घोटाले के बड़े कनेक्शनों की तलाश में निकली थी, वहां पहला फ्यूज बल्ब हाथ लग चुका है, या कहें तो एसईसीएल के मुआवज़ा महाघोटाले में सीबीआई का काम अब बिजली विभाग के लाइनमैन जैसा हो गया है।जहां फॉल्ट मिले, वहीं पकड़कर हिलाओ..अगर करंट लगे तो समझ लो कनेक्शन सही पकड़ा है। अब एजेंसी की नजर उन असली पावर सप्लाई वालों पर है जो पूरे सिस्टम में करंट दौड़ाते रहे।
कोयला खदानों से जुड़े इस मुआवजा घोटाले में सीबीआई अब तक दो भूमाफियाओं को पकड़कर कई परतें खोल चुकी है। लेकिन मामला यहीं तक सिमटा हुआ नहीं है। जांच से जुड़े सूत्र बताते हैं कि भूमाफिया सिर्फ दिखावटी बोर्ड थे, जबकि असली पावरहाउस एसईसीएल के अंदर बैठे वे अफसर थे जो निचले स्तर के कर्मचारियों को रिश्वतखोरी का वोल्टेज देकर पूरा नेटवर्क चालू रखते थे।
जांच के जानकार बताते हैं कि ये भूमाफिया असली खिलाड़ी नहीं..ये तो सिंगल स्विच वाले लोकल बोर्ड थे, जबकि मेन एमसीबी उन अफसरों के पास थी, जिनकी टेबल से बिना ‘ऑन’ किए कोई भी करप्शन लाइन चालू नहीं होती। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में कुछ और बड़े कनेक्शन पकड़ में आ सकते हैं, और पावरहाउस की पूरी वायरिंग खुलकर सामने आ सकती है।
आईपीएस की तबादला सूची
महीने भर की भाग दौड़ के बाद अब जाकर सरकार और आईपीएस अफसरों को चैन की सांस मिली। डीजीपी.आईजी कांफेंस ठीकठाक निपट गया। तीन दिन बाद कैबिनेट की बैठक होना है उसके बाद विधानसभा सत्र, और मंत्रालय में एक्शन। खबरीलाल खबर लाए हैं कि आईएएस और आईपीएस की एक तबादला सूची तैयार है।
खबरीलाल की माने तो विधानसभा सत्र के दौरान या इसके तुरंत बाद सरकार रायपुर में पुलिस कमिशनर सिस्टम लागू कर सकती है। इसके लिए पुलिस मुख्यालय और जिलों में फेरबदल जरूरी हो गया है। वैसे कल ही छत्तीसगढ़ कैडर के दो आईपीएस हैदराबाद के नेशनल पुलिस एकेडमी में ट्रेनिंग के लिए रवाना होंगे।
छत्तीसगढ़ कैडर के दो आईपीएस अफसर चिराग जैन और संदीप पटेल पहले ही हैदराबाद एकेडमी में फाउंडेशन कोर्स कर रहे हैं। जाहिर इन पदों को खाली तो नहीं छोड़ा जा सकता और रोटेशन पूरा करने के लिए आईपीएस के ट्रांसफर होना है। अब इस सूची में किन जिलों के एसपी प्रभावित होंगे, इसका पता जल्द लग जाएगा।
सिफारिश से सृजन!
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में देर सबेर 41 जिलों के डीसीसी अध्यक्षों की सूची जारी हो गई। इसी के साथ संगठन सृजन का काम भी पूरा हो गया। मगर दिल्ली से जारी इस सूची में केंद्र से भेजे गए पर्यवेक्षकों की राय कम और यहां के बड़े नेताओं की सिफारिशी चेहरों को ज्यादा जगह मिली। वैसे तो हर जिले से 5.5 कार्यकर्ताओं के नाम दिल्ली भेजे गए थे लेकिन, वो नेताओं के झगड़े में पीछे धकेल दिए गए।
शराब घोटाला में जेल में बंद कवासी लखमा के बेटे को भी सुकमा में अध्यक्ष बना दिया। पूर्व सीएम भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरणदास महंत, और पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव अपने-अपने जिलों में पसंद का अध्यक्ष बनवाने में कामयाब रहे। और कार्यकर्ताओं की पसंद वाला क्राइटेरिया दरकिनार रह गया। सबसे चौंकाने वाला मामला बलरामपुर जिले का रहा जहां महल के करीबी केपी सिंहदेव की जगह हरिहर यादव और सूरजपुर में टीम राहुल की सदस्य और युवक कांग्रेस की पूर्व महासचिव रहीं शशि सिंह अध्यक्ष बन गईं।
अब कांग्रेस के अंदरखाने कार्यकर्ता ये पता करने में लगे हैं कि, इन दोनों नाम के पीछे किसी की सिफारिश थी या पूर्व कांग्रेस विधायक बृहस्पति सिंह का लेटर बम। जिसकी धमक रायपुर से दिल्ली तक पहुंची थी। फिलहाल कांग्रेस का सिफारिश से सृजन वाला ये अभियान आगे क्या गुल खिलाता है ये देखने वाली बात होगी।



