
मनेंद्रगढ़। पूर्व सरकार के समय बने खाली और बंजर पड़े गोठानों में अब हरियाली लौट रही है। मनेंद्रगढ़ वनमंडल के डीएफओ मनीष कश्यप की विशेष पहल पर यहां “महुआ बचाओ अभियान” चलाया जा रहा है। गोठानों में फेंसिंग की मरम्मत कर महुआ के पौधे लगाए जा रहे हैं। इससे जहां अतिक्रमण रुका है वहीं भविष्य में ग्रामीणों को महुआ से आय का स्थायी साधन भी मिलेगा। अब तक वनमंडल के 98 गोठानों में लगभग 60 हजार महुआ पौधे लगाए जा चुके हैं। इसके लिए हर ग्राम पंचायत से एनओसी ली गई और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में पौधारोपण की शुरुआत हुई।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने कार्यकाल में गोठानों पर खास ध्यान दिया था। प्रदेशभर में करीब आठ हजार गोठान बनाए गए, जिन पर औसतन 50 लाख रुपये खर्च हुए। लेकिन ग्रामीण इलाकों में इनका कोई ठोस उपयोग नहीं हो पाया। ज्यादातर गोठान खाली पड़े रहे और धीरे-धीरे अतिक्रमण तथा असामाजिक गतिविधियों का अड्डा बनने लगे।
महुआ पेड़ों की घटती संख्या चिंता का विषय
महुआ पेड़ छत्तीसगढ़ की ग्रामीण और आदिवासी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण आधार हैं। लेकिन जंगल के बाहर इनकी संख्या तेजी से घट रही है। खासकर खेतों की मेड़ और खाली जमीन पर लगे महुआ पेड़ों का पुनरुत्पादन न होना सबसे बड़ी समस्या है। ग्रामीण संग्रहण से पहले जमीन साफ करने के लिए आग लगा देते हैं, जिससे नए पौधे नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा ग्रामीण महुआ के सभी बीज भी इकट्ठा कर लेते हैं, जिससे स्वाभाविक अंकुरण संभव नहीं हो पाता।
महुआ पेड़ की औसत आयु लगभग 60 वर्ष होती है। अगर इनके पुनरुत्पादन पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में ये पेड़ खत्म हो सकते हैं। एक महुआ पेड़ से औसतन एक परिवार को दो क्विंटल फूल और 50 किलो बीज मिलता है, जिसकी कीमत करीब 10 हजार रुपये होती है। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने भी सभी राज्यों को वृक्षारोपण में महुआ पौधों को प्राथमिकता देने के निर्देश दिए हैं।
ग्रामीणों में उत्साह, राष्ट्रीय स्तर पर सराहना
मनेंद्रगढ़ में महुआ बचाओ अभियान की शुरुआत पिछले वर्ष हुई थी। उस समय ग्रामीणों को 30 हजार ट्री गार्ड उपलब्ध कराए गए और उनके घरों में पौधारोपण कराया गया। ग्रामीणों में इस अभियान को लेकर खासा उत्साह देखा गया। इसी क्रम में इस वर्ष अब तक 1.12 लाख पौधे लगाए जा चुके हैं। इनमें 30 हजार पौधे ग्रामीणों के घरों में ट्री गार्ड के साथ, 22 हजार पौधे बाड़ी में और 60 हजार पौधे गोठानों में लगाए गए।
इस पहल के लिए 2015 बैच के आईएफएस अधिकारी मनीष कश्यप को दिल्ली में “नेक्सस ऑफ गुड” फाउंडेशन का अवार्ड भी मिल चुका है।
आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक महत्व
महुआ का पेड़ केवल आय का साधन ही नहीं, बल्कि आदिवासी जीवन का हिस्सा है। बस्तर और सरगुजा जैसे अंचलों में महुआ के मौसम में पूरा गाँव इसके संग्रहण में जुट जाता है। महुआ का फूल, फल, बीज, छाल और पत्तियाँ सब उपयोगी हैं। भारत के उत्तर, दक्षिण और मध्य के 13 राज्यों में यह वृक्ष पाया जाता है। कई समाज इसे “कल्पवृक्ष” भी मानते हैं।
ग्रामीण इलाकों में जंगल के बाहर अगर कोई पेड़ बचा है तो वह महुआ ही है। किसान अपने खेतों से अन्य पेड़ काट देते हैं, लेकिन महुआ को नहीं छूते। बावजूद इसके, उत्पादन में गिरावट दर्ज हो रही है और नए पौधे जंगलों के बाहर नहीं उग रहे। मनेंद्रगढ़ वनमंडल का “महुआ बचाओ अभियान” इस गंभीर समस्या का व्यवहारिक समाधान है, जिसे सभी जिलों और राज्यों में लागू किया जा सकता है।