लखनऊ, 1 सितंबर। Historic Decision in HC : पारिवारिक विवादों से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण नजीर पेश करते हुए लखनऊ हाईकोर्ट की एकल पीठ ने साफ कर दिया है कि अगर पत्नी खुद आर्थिक रूप से सक्षम है और अच्छा वेतन कमा रही है, तो वह पति से गुजारा भत्ता (भरण-पोषण) की हकदार नहीं हो सकती।
यह फैसला न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की पीठ ने सुनाया, जिसमें पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को पलट दिया गया, जिसमें पति को पत्नी को हर महीने ₹15,000 भरण-पोषण के तौर पर देने का निर्देश दिया गया था।
दोनों सॉफ्टवेयर इंजीनियर, लेकिन गुजारा भत्ता सिर्फ बच्चे को
मामला एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर दंपति के बीच चल रहे पारिवारिक विवाद से जुड़ा है। पति की आय लगभग ₹1.75 लाख प्रति माह है, जबकि पत्नी भी एक प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत है और ₹73,000 प्रति माह कमाती है। इसके अलावा पत्नी के पास 80 लाख रुपये मूल्य का फ्लैट भी है, जिसे उसने खुद खरीदा है।
पति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए तर्क दिया कि जब पत्नी स्वयं आत्मनिर्भर है, तो वह भरण-पोषण की पात्र नहीं हो सकती। कोर्ट ने इस तर्क को
उचित माना और पारिवारिक न्यायालय के आदेश को त्रुटिपूर्ण बताते हुए रद्द कर दिया।
बच्चे के भरण-पोषण से नहीं हट सकती जिम्मेदारी
हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला सिर्फ पति-पत्नी के बीच नहीं है, बल्कि इसमें नाबालिग बच्चे के अधिकार भी शामिल हैं। अदालत ने कहा कि बच्चे की जरूरतों की जिम्मेदारी पिता की बनी रहेगी। इस आधार पर कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह हर महीने ₹25,000 रुपये अपने बच्चे के भरण-पोषण के लिए देता रहे।
न्याय की नई दृष्टि
इस फैसले को पारिवारिक मामलों में एक महत्वपूर्ण मिसाल माना जा रहा है।
हाईकोर्ट ने दो टूक कहा कि, “गुजारा भत्ता की अवधारणा उसी स्थिति में लागू होती है, जब पत्नी को जीविकोपार्जन के लिए पति पर निर्भर रहना पड़े। यदि वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र है, तो भरण-पोषण की मांग औचित्यहीन हो जाती है।”
भविष्य के मामलों में बनेगी नजीर
कानूनी विशेषज्ञों (Historic Decision in HC) का मानना है कि यह फैसला भविष्य में चल रहे हजारों पारिवारिक विवादों के लिए दिशा-निर्देशक साबित हो सकता है, खासकर उन मामलों में जहां दोनों पक्ष अच्छी आय अर्जित करते हैं और विवाद केवल अधिकारों और दायित्वों की व्याख्या पर केंद्रित होता है।