
कोरबा। सावन के पहले सोमवार काे लेकर शिवभक्त शिवलिंग में जल चढाने कनकेश्वर धाम कनकी कल यानि सोमवार सुहब 4 बजे शिव भक्त हसदेव नदी सर्वमंगला मंदिर से कांवड़ लेकर निकलेंगे। शिव की भक्ति और शक्ति के उपासना के साथ कनकी मार्ग हर-हर महादेव के जयकारे से गुंजायमान होगा। कावंड यात्रा में शमिल होने के लिए कोरबा कावड़िया संघ ने लोगो से अपील की है।
बता दें कि कोरबा कांवडिया संघ के द्वारा कनकेश्वर धाम कांवर यात्रा 14 जुलाई को मां सर्वमंगला मंदिर के समीप कांवरिया घाट हसदेव नदी से जल लेकर सावन सोमवार के लिए सोमवार को प्रात 4:00 बजे कावड़ यात्रा भोले बाबा के जलाभिषेक के लिए कनकेश्वर मंदिर कनकी धाम निकलेगी। इस अवसर पाए शहर के सभी धर्म प्रेमियों को अधिक से अधिक संख्या में कावड़ यात्रा हेतु शामिल होने की अपील की गई है। शिव भक्तो के लिए रात्रि 8:00 बजे विशेष सिंगर की व्यवस्था कोलकाता फ्लावर डेकोरेशन के द्वारा भी की गई है । उक्त जानकारी कावड़ यात्रा कार्यक्रम की व्यवस्था प्रमुख नागरमल अग्रवाल, ठाकुरदास मनवानी , दिनेश पटेल एवं महेश अग्रवाल ने दी है।
भक्तों की हर मनोकामना होती है पूरी
मंदिर के पुजारी पुरुषोत्तम बताते हैं, “हमारी कई पीढ़ियां इसी मंदिर से जुड़ी हुई है. सालों से हम कनकेश्वर धाम की सेवा करते आ रहे हैं. कनकी के भोलेनाथ को स्थापित नहीं किया गया है. वह स्वयंभू हैं. वह यहां स्वयं प्रकट हुए हैं, जिसके कारण भक्तों की कनकेश्वर धाम के प्रति खास आस्था है. लोग अपनी आस्था से यहां आते हैं और सच्चे मन से जल अर्पण करते हैं. जो भी पूरी श्रद्धा के साथ कनकेश्वर धाम आता है. भोलेनाथ उसकी मनोकामना पूरी करते हैं.”
गाय शिवलिंग पर करती थी दूध से अभिषेक:
कहा जाता है “वर्तमान में जो पुजारी वहां हैं, उनकी 18वीं पीढ़ी पहले उनके पूर्वज को जमीन से शिवलिंग प्राप्त हुआ था. गाय एक स्थान पर जाकर एक पत्थर पर अपना दूध अर्पण कर देती थी. उसके थन से अपने आप ही दूध बहकर इस स्थान का अभिषेक करता था, लेकिन इस गाय के मालिक का गांव वाले से झगड़ा हुआ था कि कोई उसकी गाय को बिना बताए दूह लेता है. ऐसा कई बार हुआ, एक बार वर्तमान पुजारी पुरुषोत्तम के 18वीं पीढ़ी पहले वाले परदादा को सपना आया. सपने में शिवजी बोले, “वह गाय मेरी भक्त है और मैं स्वयं वहां विराजमान हूं.” जब वहां की खुदाई की गई तब शिवलिंग पाया गया. तभी से इस मंदिर की ख्याति है. मंदिर का निर्माण कर पूजा-अर्चना तब से शुरू कर दी गई. इस मंदिर में कुछ मूर्तियां हैं, जो 11वीं और 12वीं शताब्दी की हैं. उन मूर्तियों का पौराणिक महत्व भी है.”
प्रवासी पक्षियों का भी है बरेसा
धार्मिक महत्व के साथ ही कनकी का शिव मंदिर प्राकृतिक महत्व का भी एक केंद्र है. प्रत्येक साल जो प्रवासी पक्षी यहां आते हैं. वह मंदिर के आसपास मौजूद पेड़ पर ही अपना घोंसला बनाते हैं. यहां-वहां प्रजनन करते हैं और फिर मीलों की यात्रा कर वापस लौट जाते हैं. प्रवासी पक्षी वैसे तो मानसून का संदेश लेकर आते हैं, लेकिन वह मंदिर के आसपास ही अपना घोंसला बनाते हैं. इसलिए इन्हें भी शिव भक्त भोले शंकर की आस्था से जोड़कर देखते हैं.