खाकी के खिलाड़ियों की व्यथा, हमें मिली उसकी सजा जो…
खाकी के वीर सिपाही विभाग के हमदर्दों को “हम बेवफ़ा हरगिज़ न थे,पर हम वफ़ा कर न सके !हमको मिली उसकी सजा,जो हम ख़ता कर न सके!!”.. गुनगुना कर व्यथा सुना रहे है। दरअसल पुलिस हिरासत में हुई सूरज की मौत पर मचे बवाल के बीच तीन वीर सिपाहियों पर बलि का तीर चल गया।
तीनों के सस्पेंशन के बाद भी माहौल शांत नहीं हुआ उल्टा जिन्हें बचाने के लिए पटकथा लिखी गई वे ही जनमानस के टारगेट में आ गए। खबरों ने अपनी हेडलाइन से बता दिया कि कार्रवाई गलत हुई और जिसे बचाने के लिए हुई उनकी ओर इशारा भी कर दिया। घटनाक्रम को लगभग 10 दिन गुजर गए लेकिन, उनकी यादें और पुलिस के प्यादे अभी भी लोगों अंतरात्मा को बार बार कचोट रहा है। हालांकि घटना के लिए न्यायायिक जांच की बात आई गई है, जांच पर खाकी के वीरों के साथ साथ शहर के चाणक्यों की नजर टिकी है।
खबरीलाल की माने तो बड़े अधिकारियों को बचाने और खाकी पर उछल रहे कीचड़ को साफ करने के टेंशन के चलते प्यादों को सस्पेंशन होना पड़ा है। तभी तो समय गुजरने के साथ अपने साथ हुए ज्यादती को “हम बेवफ़ा हरगिज़ न थे,पर हम वफ़ा कर न सक!हमको मिली उसकी सजा,जो हम ख़ता कर न सके!! गुनगुनाकर सस्पेंड होने वाले लोगो को सच्चाई से वाकिफ करा रहे है।
ब्यूरोकेट भाई…कमाई और मलाई
सैय्या भय कोतवाल तो डर काहे का..! की युक्ति को प्रदेश के एक ब्यूरोक्रेट अफसर के भाई ने सच कर दिया है। उनकी कमाई को लेकर सदन में भी खूब हो हल्ला मचा और जांच के निर्देश भी जारी किए गए हैं। मामला सोलर स्ट्रीट लाइट खरीदी का है। असल में भाई ने ब्यूरोक्रेट्स अफसर के पोस्टिंग के अवसर को गोल्डन ऑपर्चुनिटी मानते हुए जंगल की सड़कों में सोलर लाइट लगा डाला।
ये बात राजनीति के राजदारों को हजम नहीं हुई तो विधानसभा में मामला गूंजने लगा। सदन में मचे हंगामा के बाद स्ट्रीट लाइट खरीदी की जांच की घोषणा की गई। जांच की खबर वायलरल होने के बाद ब्यूरोक्रेट के सहारे सप्लाई से मलाई काटने वाले भाई नियमों की दुहाई देने लगे हैं।
खबरीलाल की माने तो ऊर्जाधानी के डीएमएफ घोटाला से बड़ा सोलर लाइट खरीदी में गड़बड़झाला हुआ है। वैसे तो कहा भी गया है ईमानदारी एक महंगे गहने की तरह जिसे कभी कभार पहन लेना चाहिए। लिहाजा भाई ने अपने रिश्तेदार के रहते कमाई की तो इतना हंगामा क्यों..!
वैसे भी प्रदेश का हर ब्यूरोक्रेट अपने भाई या एक स्टेपनी को साथ लेकर चलने की परंपरा का निर्वहन करते आए हैं। पूर्ववर्ती सरकार की बात करें तो जिले के आईपीएस और आईएस भी अपने स्टेपनी के कारण चर्चा में रहे। अब बात इधर की करें तो भाई कमाई करके नियमों की दुहाई देते फिर रहे हैं और सरकार जांच कर मलाई से घी निकालने का प्रयास करती दिख रही है।
टीपी नगर पर किसकी ” नजर”
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एक पुरानी कहावत है दो सांडों की लड़ाई में बाड़ी का विनाश होना तय है। ऐसे ही अफसर और नेता की लड़ाई में नया ट्रांसपोर्ट नगर में विकास से पहले विनाश हो गया है। बता दें कि शहर में भारी वाहनों के कारण हो रही लगातार दुर्घटनाओं पर नियंत्रण करने व भारी वाहनो के बढ़ते दवाब को कम करने के लिए नया ट्रांसपोर्ट नगर बनाने की कार्ययोजना पर अफसर और नेताओं की काली नजर लग गई है।
खबरीलाल की माने तो शहर से ट्रांसपोर्ट नगर को शिफ्ट कर बरबसपुर में बनाने की योजना पूर्व अफसरों को रास नहीं आई और नए सिरे से झगरहा की जमीन को चिन्हांकन कर प्रस्ताव के लिए भेजा गया। जिसमें आपत्तियों की झड़ी लग गई और टीपी नगर बसाने का सपना सिर्फ सपना बनकर रह गया।
जमीन के जमींदारों की माने तो बरबसपुर में प्रस्तावित स्थल पर शहर के कद्दावर मंत्री के जमीन होने की ईर्ष्या से कुंठित अधिकारियों ने शहरवासियों के सपनों को स्वाहा कर दिया। अब शहर के गणमान्य नागरिक आपस मे चर्चा करते हुए कह रहे है टीपी नगर बनता तो कहीं भी बने उससे मतलब नहीं है.. आखिर दो सांड की लड़ाई में बाड़ी का विनाश हो गया और खामियाजा जनमानस को भुगतना पड़ रहा है।
अटका अटकी में फाइल
मौसम और सरकार अगर मेहरबान हो जाए तो महीनों का काम मिनटों में निपट जाता है। अब मौसम को ले लिजिए. जून में मानसून अटका अटकी के खेल में बस्तर से आगे नहीं बढ़ पाया। और जब वो मेहरबान हुआ तो ऐसा बरसा कि दो महीनों को बारिश की कमी को एक महीने में पूरा कर गया। मौसम की मेहरबानी से कम से कम किसानों को राहत मिल गई।
अब अफसर और कर्मचारी को सरकार की मेहरबानी की इंतजार है। असल में तबादले नीति की फाइल मंत्रालय में अटका अटकी वाले स्टाइल में इस टेबल उस टेबल घूम रही है। महानदी भवन में इस बात की जोरदार चर्चा है कि सरकारों की वर्किंग स्टाइल भी मौसम की तरह ही होती है..इधर मेहरबानी हुई और उधर फाइल सांय सांय….।
दरअसल प्रदेश में लोकसभा चुनाव के बाद से लंबे समय से एक कुर्सी पर जमे अफसर और कर्मचारियों के ट्रांसफर होने थे। तबादला नीति भी बन गई 5 दिन में ज्वाइनिंग नहीं दी तो एकतरफा रीलिव…सब कुछ होने के बाद भी अटका अटकी वाले खेल में फाइल टेबल में ही छूट गई। अभी हाल में प्रदेश के राज्यपाल भी बदल गए हैं। अब तो तबादल की फाइल की अटका अटकी का टाइम कुछ ज्यादा बड़ा हो सकता है। उम्मीद है कि तबादला चाहने वालों पर सरकार अगस्त में मेहरबान हो सकती है।
अब नई सहिबो… लेकर रहिबो