Education News : लाम पहाड़ में शिक्षा की नई भोर…! शिक्षक विहीन स्कूल में बहाल हुई उम्मीदें…पहाड़ी कोरवा बच्चों का बदलेगा भविष्य
युक्तिकरण के माध्यम से शिक्षक विहीन विद्यालय में शिक्षक की नियुक्ति

कोरबा, 23 अगस्त। Education News : छत्तीसगढ़ के दुर्गम और विकास से अब तक अछूते रहे लामपहाड़ में आखिरकार शिक्षा का सूरज उग आया है। वर्षों तक शिक्षकविहीन रही यहां की प्राथमिक शाला अब शासन की युक्तियुक्तकरण नीति के तहत नियमित शिक्षकों की नियुक्ति के साथ फिर से जीवंत हो उठी है।
पहाड़ी कोरवाओं के लिए नई सुबह
कोरबा विकासखंड के ग्राम पंचायत बड़गांव के आश्रित ग्राम लामपहाड़ में रहने वाले विशेष पिछड़ी जनजाति – पहाड़ी कोरवा समुदाय के बच्चों को अब शिक्षा से वंचित नहीं रहना पड़ेगा। पहले यहां तक पहुँचना ही एक कठिन और जोखिम भरा सफर माना जाता था, लेकिन अब सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचने के बाद शिक्षा का भी द्वार खुल गया है।
शिक्षकविहीन से ‘सक्रिय शिक्षा केंद्र’ तक का सफर
लामपहाड़ के प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं में वर्षों तक नियमित शिक्षक नहीं थे। पहले से पदस्थ शिक्षिका के पदोन्नति पर स्थानांतरण के बाद यहां की कक्षाएं लगभग ठप थीं। लेकिन मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के निर्देश पर चलाए गए युक्तियुक्तकरण अभियान से अब हालात बदल चुके हैं।
नए शिक्षक कलेश्वर राम कटेला की नियुक्ति के बाद प्राथमिक शाला में अब पढ़ाई नियमित रूप से चल रही है। साथ ही माध्यमिक शाला में भी एक अतिरिक्त शिक्षक की नियुक्ति हुई है।
प्राथमिक शाला – 2 शिक्षक, 33 विद्यार्थी
माध्यमिक शाला – 3 शिक्षक, 19 विद्यार्थी
अधिकांश विद्यार्थी – पहाड़ी कोरवा समुदाय से
बच्चों की मुस्कान बनी शिक्षा की पहचान
विद्यालय में अध्ययनरत छात्राओं सुखशिला, फूलमती, संगीता, देवशीला, फुलमनिया ने बताया कि अब शिक्षक समय पर आते हैं, पूरे समय रुकते हैं और नियमित रूप से पढ़ाते हैं। बच्चों को नाश्ता और मध्यान्ह भोजन भी समय पर मिलता है, जिससे उनका मन पढ़ाई में लगने लगा है। हमारे माता-पिता नहीं पढ़ पाए, लेकिन अब हमें पास में ही स्कूल मिला है- इसलिए वे हमें रोज पढ़ने भेजते हैं।
शिक्षा से जोड़ने का संकल्प
लामपहाड़ जैसे सुदूरवर्ती क्षेत्र में शिक्षा का सशक्तिकरण इस बात का प्रमाण है कि शासन की नीति और प्रशासनिक संवेदनशीलता मिलकर आदिवासी अंचलों में भी सकारात्मक बदलाव ला सकती है। युक्तियुक्तकरण जैसी पहलें वहां भी रोशनी पहुंचा रही हैं, जहां पहले सिर्फ अंधेरे का नाम था।