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‘Do or die’ पुलिस प्रोटेक्शन के साथ, पायलेटिंग,कुबेर और जेम ने बिगाड़ा जेब का खेल..दो नावों पर शान की सवारी, चांदी काट रहे उड़नदस्ता प्रभारी,नजर स्थानांतरण पर, नेता जी कह रहे मगर…

🔶पुलिस प्रोटेक्शन के साथ, पायलेटिंग…

 

अब तक आपने मंत्री अफसर को सुरक्षा देने पायलेटिंग करते देखा और सुना होगा लेकिन ये पहली बार है जब कबाड़ लोड गाड़ियों को बार्डर पार कराने पायलेटिंग की हो। शहर में एक स्क्रेब कारोबारी गंदा है पर धंधा है कि पंच लाइन की भूमिका का बखूबी निर्वहन कर रहा है और जिले के बार्डर से माल पार कराने पुलिस प्रोटेक्शन के साथ पायलेटिंग का सहारा ले रहा है।

बात कबाड़ से चल रहे जुगाड़ की है। वैसे तो आन द रिकार्ड कबाड़ के साथ सभी अवैध कारोबार पब्लिक की नजर में बंद हैं लेकिन कुछ खास लोगो को कम्प्लीमेंट देकर कारोबार को गति देने प्रोटेक्शन के साथ का पायलेटिंग की सुविधा भी दी जा रही है। सूत्रधार की माने तो दर्री क्षेत्र में कट रहे कबाड़ को बार्डर पार कराने पुलिस की एक टीम बांगो होते हुए पसान तक पायलेटिंग की और जिले की सड़कों में साये की तरह साथ रही। कबाड़ कारोबारी को बार्डर पार कराने की खुफिया रिपोर्ट के बाद महकमे में कई तरह चर्चाएं है।

सुलझे हुए सुपरकॉप कह रहे कि क्या जमाना आ गया है कबाड़ियों को भी प्रोटेक्शन देना पड़ रहा है। कारोबार को करीब से जांचने वालों का अपना अलग तर्क है वे कह रहे बॉस का आदेश और विभाग में लंबी रेस दौड़ना है तो सब करना पड़ता है। शहर के जनमानस कह रहे कि हर काम की एक लिमिट होती है। लिमिट क्रास कर अवैध कारोबारियों को प्रोटेक्शन देना मतलब अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा है। वैसे तो कोयलांचल में डीजल के साथ काला हीरा भी चमक रहा है और शहर के भीतर कबाड़ से जुगाड़ सियाराम जय जय सियाराम का राग अलाप रहा है।

 

🔶कुबेर और जेम ने बिगाड़ा जेब का खेल..

वन विभाग के सप्लायर कम ठेकेदारों का ऐन दीवाली में खेल बिगड़ गया है, सरकार ने अब जेम पोर्टल से खरीदी और कुबेर ऐप से भुगतान करने का आदेश जारी किया है। पूर्व में सीसीएफ कार्यालय से सेटिंग का टेंडर होता था जिसमें वही सप्लायर अलग अलग फर्म से सप्लाई करता था। अब सरकार बदली तो सिस्टम भी बदला। लिहाजा सेटिंग वाले ठेकेदार व सप्लायरों की दाल नहीं गल रही है। रही सही कसर कुबेर ने निकाल दी क्योंकि सामग्री का भुगतान अब कुबेर ऐप्प से होना है। लिहाजा अफसर और सप्लायर घूम घूम कर गाना गा रहे हैं हमारा तो कुबेर और जेम ने सारा गेम बिगाड़ दिया।

वैसे तो हर सरकार का अपना विजन और सुशासन को गति देने का रीजन होता है। पूर्वर्तीय सरकार के द्वारा सीएसआईडीसी के माध्यम से खरीदी कर चहेते ठेकेदारों को रेवड़ी बांटी थी लेकिन अब सत्तासीन सरकार ने जेम पोर्टल के माध्यम से खरीदी करते हुए सप्लाई में पारदर्शिता लाने का निर्णय लिया है। वन विभाग की खरीदी में यह पहला अवसर है जब जेम से सामान खरीदी और कुबेर से भुगतान हो रहा है। ऑनलाइन होने वाले इस टेण्डर को लेकर सप्लायर और अफसर बेहद परेशान हैं। वजह है बंधा बंधाया कमीशन कही 2 परसेंट कहीं 4 परसेंट..!

सूत्रधारों की माने तो फारेस्ट में अधिकांश सप्लायर आईएफएस के करीबी हैं जो प्रदेश के डिवीजन में अपने रीजन के लिए काम करते है। शेष काम को नेता और जिले के कुछ अभिनेता आपस मे बांटते थे। अब जब जेम से ऑनलाइन समान खरीदी का आदेश हुआ है तो सेटिंगबाजो की जेब का बाजा बज गया है। जो अपनी ही सरकार की पॉलिसी पर रोना रोते हुए कहते फिर रहे हैं इससे अच्छा तो कांग्रेस का शासन था.. पांच बरस आनंद के थे।

 

🔶 दो नावों पर शान की सवारी, चांदी काट रहे उड़नदस्ता प्रभारी…

हमें बचपन से सिखाया जाता है कि दो नावों की सवारी करने वाला अक्सर डूब जाता है। लेकिन, परिवहन विभाग के अफसर दो नावों की सवारी को शान की सवारी समझ रहे हैं। हां ये बात अलग है उनकी सवारी शहर के कॉमनमैन पर भारी पड़ रही है और उड़नदस्ता प्रभारी चांदी काट रहे है। तभी तो राख और कोयला लोड गाड़ियां ओवर लोड बेखौफ सड़क पर दौड़ रही है।

कहा तो यह भी जा है कि साहेब का पोस्टिंग वाले जिले पर फोकस ज्यादा रहता है और उधारी यानी प्रभारी जिले पर कभी कभार एहसान कर देते हैं। बिना अफसर के चल रहे दफ्तर में काम कराने वाले एजेंटों का दबदबा बढ़ता जा रहा है और अव्यवस्था होगी तो स्वाभाविक रूप से साहेब के मान पर बात आएगी।

स्वतंत्र प्रभार वाले डीटीओ की पोस्टिंग न होने से उड़नदस्ता टीम की चांदी हो गई है। सूत्रों की माने तो जिले के ट्रांसपोर्टरों से बाकायदा उड़नदस्ता प्रभारी के सहयोगी मंथली प्रोटक्शन मनी वसूल रहे हैं जो 20 पेटी के आसपास है। आद्योगिक नगरी कोरबा की एक्स्ट्रा कमाई ने साहेब को एक टिकट पर दो पिक्चर देखने पर मजबूर कर रखा है।

 

🔶शिक्षा विभाग की नजर स्थानांतरण पर, नेता जी कह रहे मगर…

 

शिक्षा विभाग के ट्रांफ़सर पर अफसरों की टकटकी नजर है। तबादले को लेकर नेता जी कह रहे मगर विभाग का मंत्री तो… .! जिस तरह चातक पक्षी स्वाति नक्षत्र में बरसने वाले पानी का अपनी प्यास बुझाने के लिए प्रतीक्षा करता है। ठीक उसी तरह शिक्षा विभाग के अफसर मंत्रालय से होने वाले ट्रांफ़सर आदेश पर टकटकी लागये बैठे हैं।

वैसे तो सभी विभागों में विभागीय फेरबदल हो चुका है लेकिन,शिक्षा विभाग का स्थानांतरण वेटिंग में है। ट्रांसफर पोस्टिंग में हो रहे विलंब पर विभागीय पंड़ित अपना अपना राय दे रहे हैं कोई मंत्रालय आबंटन न होने की बात कहते हैं तो कोई लिस्ट तैयार होने की। जो भी पर ट्रांसफर में हो रही देरी से शिक्षकों का मनोबल और शिक्षा का स्तर डाउन हो रहा है। हालांकि यह कहा जा रहा है कि स्थानांतरण के तरणताल में कभी भी लहरें उठ सकती है।

कहा तो यह भी जा रहा कि भाजपा के स्थानांतरण एक्सप्रेस पर हाईकमान तक शिकायत हुई थी। सो स्थानांतरण को लेकर थ्री लेयर की सिक्युरिटी रखी जा रही है जिससे पार्टी कार्यकर्ता के रूप में काम करने वाले अफसर ट्रांसफर की चपेट में न आ जाये। कोरबा जिला में जिस तरीके से शिक्षा विभाग में काम चल रहा है उससे तो अब शिक्षक भी कहने लगे हैं जितना पैसा उतना काम..रघुपति राघव राजा राम..!

🔶 ‘करो या मरो’

वाकया आजादी से 5 साल पहले का है जब भारत के लोग विदेशी दासता से मुक्ति पाने के लिए बेकाबू हो रहे थे। तब अहिंसा अहिंसा का राग अलाप रहे महात्मा गांधी की बात भी लोग सुनने को तैयार नहीं थे…आखिर में गांधी की कांग्रेस को ‘करो या मरो’ से काम चलाना पड़ा।

आप सोच रहे होंगे कि आजादी के अमृतकाल में 1942 की घटना को याद करने का कौन सा तुक है। तो भाई जी ‘करो या मरो’ का फार्मूला तब भी हिट और आज की दौर में तो एकदम फिट…है।

नहीं समझे तो जान लिजिए बात अपने शहर रायपुर दक्षिण की हो रही है….जहां अगले महीन विधानसभा उप चुनाव होने हैं। और बापू को मानने वाले सफेद टोपी वाले कांग्रेस के नेता दो महीने बाद होने वाले निगम चुनाव में पार्षद बनने सपना पाले पार्टी के सेकेंड लाइन के नेताओं को ‘करो या मरो’ का फार्मूला पकड़ दिया।

अब जिन्हें पार्षद बनना है वो अपनी टिकट पक्की करने के लिए ‘करो या मरो’में पिल पड़े हैं। त्योहार के सीजन जो नेता बाजार के कई चक्कर लगा आते थे वो गली नुक्कड़ों में अपने पड़ोसी की मदद करने के लिए चूना कहां सस्ता मिलेगा..झालर कहां से लेना…मिठाई यहां से लेना दुकानदार अपने मित्र हैं डिस्काउंट दिया दूंगा….समझाते फिर रहे हैं।

कांग्रेस ने अपने पार्षदों को दो टूक बता दिया है कि अगर उनके वार्ड में पार्टी को ठीकठाक वोट नहीं मिले तो समझों टिकट गई पानी में अब उनके सामने दो ही रास्ता बचा है..’करो या मरो’…..ठीकठाक वोट दिला पाएं तो चल पड़ी नहीं तो मरो’ से ही काम चलाना पड़ेगा। और कोई मरने को तैयार नहीं दिखता।

कुल मिला कर दिवाली के बीच संपन्न हो वाला रायपुर दक्षिण विधानसभा का उपचुनाव इस बार बम पटाखे वाला होगा और जनता की दीवाली ऐसे ही मन जाएगी। आखिर ‘करो या मरो’ का सवाल जो है।

 ✍️ अनिल द्विवेदी , ईश्वर चन्द्रा

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