DGP’s awareness campaign: कानून के कर्णधार बने ‘स्क्रिप्ट राइटर’, “हाय राम! अक्षय ऊर्जा ने किया काम,और साहब ले गए इनाम”..”नारियल” को डिकोड करने साइबर एक्सपर्ट की तलाश, 1020 करोड़ के काम में 1250 करोड़ का खर्च!

कानून के कर्णधार बने ‘स्क्रिप्ट राइटर’ पर कोर्ट का टाइट ऑर्डर..
” ठन-ठन की सुनो झनकार,ये दुनिया है काला बाज़ार ये पैसा बोलता है.. ये पैसा बोलता है ..! 90 के दशक में आई काला बाजार का गीत पुलिस विभाग में स्मित मुस्कान के साथ सभी गुनगुना रहे हैं। कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद कानून के कर्णधार कटाक्ष कर रहे हैं ” पुलिस डायरी में झोलझाल तो थानेदार होनहार जरूर होगा। ”
कहते हैं, सच्चाई और खुशबू को ज्यादा देर तक कैद नहीं रखा जा सकता। फर्क बस इतना है कि खुशबू के लिए फूल असली चाहिए, और थानेदार साहब तो कागज के फूलों से ही महक फैलाने निकले थे। अब सोचिए, कागज के फूलों से खुशबू कैसे आती? हां, धुआं जरूर आता है, और वो भी तब जब कोर्ट जैसी माचिस पास हो।
पाली पुलिस ने बनावट के वसूलों को आत्मसात कर सिंहासन जीत इंद्र की ओर पांव बढ़ाने की पूरी स्क्रिप्ट तैयार कर ली थी। कहानी में ट्विस्ट तब आया जब कोर्ट ने कहा “जरा स्क्रिप्ट इधर दो, देखते हैं”… और देखते ही बोले “अरे ये तो पूरी फिल्म ही फेक है!” नतीजा, एजीएम साहब के लिए गेस्ट हाउस यानी पुलिस कस्टडी का पास तुरंत तैयार करने का आदेश जारी हो गया।
एजीएम साहब को कौन बताए मर्डर जैसे मामले से नाम कटवाने का सपना ऐसा ही है जैसे अपने अपराधों को ‘मिनरल वाटर’ की जगह “गटर वॉटर” से धोना..! जनमानस भी मजे में शोर कर रही है “वाह रे थानेदार , तेरे खेल में तो सबकुछ था… बस रेफरी ईमानदार निकल आया।” कहा यह भी जा रहा कि पुलिस जांच के बाद ज्यादातर डायरी में नाम जोड़ती है लेकिन जीएम साहब का नाम हटाकर साबित कर दिया कि अभी भी पुलिस में कानून का भय पर नहीं बल्कि सिक्के खनखन करती लय पर शय (लेट जाना) की परंपरा खाकी की आंच को राख कर देती है।
एजीएम साहब की ट्रिक से उनका धन और कर्तव्यपथ दोनो नष्ट हो गया क्योंकि बचने के लिए जो खर्च किया था वो तो काम नहीं आया और ऊपर से कोर्ट की ललकार के बाद गिरफ्तारी की तलवार..राम जाने क्या होगा आगे!!
“हाय राम! अक्षय ऊर्जा ने किया काम, डीईओ ले गए इनाम”
एक पुरानी कहावत है पंच की खेती सरपंच का नाम..! कभी कभी ऐसा भी देखा जाता है कि छोटे ओहदे का व्यक्ति कितना भी बड़ा काम क्यों न कर ले उसे उसका इनाम नहीं मिलता। जो बड़े पद वाले को मिल जाता है हनुमान जी ने लंबा सफर करके पहाड़ को लंका तक लाया था लेकिन उन्हें कोई गिरधर नहीं कहता, वही श्री कृष्ण ने पर्वत को उठाया था और लोग उन्हें गिरधर कहते है। यही दशा इन दिनों शिक्षा और अक्षय ऊर्जा के बीच देखा जा रहा है।
दरअसल अक्षय ऊर्जा विभाग ने सुदूर अंचल में पसीना बहाया, सोलर लाइट लगवाकर स्कूलों में उजियारा पहुँचाया। लेकिन जब सम्मान और इनाम की बात आई तो शिक्षा विभाग के ‘दीप्तमान’ डीईओ साहब अवसर का सूर्यग्रहण कर स्वयं प्रकाशित हो उठे।
अब विभागीय अधिकारी, जिनका पसीना अभी सूखा भी नहीं था, सिर धुनकर कह रहे हैं “हे राम! ये कैसा न्याय? ये कैसा इनाम?”
दरअसल 2 अगस्त को राज्य स्तरीय समारोह में हुए इस ‘श्रेय महोत्सव’ में वास्तविक कार्यकर्ता का नाम नदारद था, मगर मार्केटिंग कौशल में निपुण डीईओ साहब का नाम जगमगा उठा। साहब के बारे में सहकर्मी कहते हैं “वो तो ऐसे हैं जो मिट्टी को भी सोना बताकर बेच सकते हैं!” तो इनाम की बिसात।
अब शिक्षा विभाग के गलियारों में फुसफुसाहट चल रही है कि “साहब तो शिक्षा के मंदिर में व्यवसाय की आरती उतार रहे हैं।” कौन जानता था कि “दीप जलाने” की बजाय “लाइट लगवाने” से भी आत्मप्रकाश संभव है! कुछ तो यह भी कह रहे हैं कि विभाग के एक गुरुजी की हालिया गिरफ्तारी की पटकथा भी साहब की रीति-नीति के कलम से ही लिखी गई थी।शिक्षा विभाग में अब ‘नीति’ नहीं, ‘व्यापार की रणनीति’ चल रही है। जिन्होंने कार्य किया, वे मौन हैं और जो शाब्दिक कारीगरी से ऊँचे मंच पर जा पहुंचे,वे वाहवाही लूट रहे हैं। इस नव-लोकतांत्रिक नीति पर अब सहकर्मीगण चाय की चुस्की के साथ दबी जुबान से कह रहे हैं “यह सुशासन नहीं, ‘सूक्ष्म राजनीति’ का स्वर्णिम काल है।” कुछ लोग इसे ” सम्मान नहीं, ‘साम-दाम-दंड-भेद’ के युग में श्रेय का शुद्ध व्यापार की उपमा दे रहे है।
”नारियल” को डिकोड करने साइबर एक्सपर्ट की तलाश
सरकार जब हाईटेक तो मातहत अफसर और कर्मचारी भला कैसे पीछे रह सकते हैं, बस तरीका थोड़ा बदल जाता है। दरअसल नायब तहसीलदारों के हड़ताल के बीच उनके ग्रुप में एक वॉट्सऐप चैट वायरल हुई थी, जिसमें प्रमोशन के लिए ‘नारियल’ का कलेक्शन की बात थी, उसकी जबरदस्त चर्चा है।
अब इस वायरल चैट का डिकोड करने के लिए बड़े बड़े धुरंधर दिनरात मथापच्ची कर रहे हैं। प्रमोशन की लाइन में लगे दिगर विभाग के लोग वॉट्सऐप चैटिंग में कितना ‘नारियल’ और कितने ‘किलो’ वाले कोडवर्ड को क्रेक करने के लिए मंत्रालय के साइबर एक्सपर्ट की तलाश कर रहे हैं।
इस बात की भी जोरदार चर्चा है कि, वायरल चैट के बाद सरकार के साथ तहसीलदारों की बैठक हुई उसके बाद जूनियर तहसीलदारों की मांग पर सरकार ने हामी भर दी। यानि अब उन्हें सरकारी वाहन का सुख भी मिलेगा। अब नारियल और किलो वाला तहसीलदारों का फार्मूला बाकी विभाग के लिए नया रास्ता खोलने वाला है..बस ”नारियल” कलेक्शन में कोई कमी बेशी नहीं होनी चाहिए।
जिलों तक कब पहुंचेगा डीजीपी का चेतना अभियान
प्रदेश के डीजीपी अरुण देव गौतम पिछले सप्ताह बिलासपुर पहुंचे, अफसरों की मीटिंग ली। उन्होंने कानून व्यवस्था व अपराधों की रोकथाम के लिए जरूरी ताकीद दिए। असल में ऐसा कम ही होता है जब डीजीपी लेबल के अफसर मुख्यालय से बाहर आईजी रेंज या जिलों में मीटिंग लेते हों।
डीजीपी अरुण देव गौतम ने इसकी शुरुआत की और इसका स्वागत किया जाना चाहिए। उनकी इस पहल का संदेश एकदम साफ सामुदायिक पुलिसिंग के जरिए अपराधों की रोकथाम और समाज का विश्वास जीतने के लिए पुलिस का अपना चेहरा बदलने के लिए तैयार होना होगा।
हालांकि बिलासपुर संभाग में कोरबा, जांजगीर चांपा, रायगढ़ जैसे जिलों में क्राइम ग्राफ तेजी से बढ़ा है। इन जिलों में कोल माफिया, रेत माफिया, कबाड़ माफिया, जमीन माफिया फलफूल रहे हैं। कोरबा जैसे जिलों में तो कोयला चोरी, डीजल चोरी और कबाड़ का खेल कई बार लोगों की जान ले चुका है।
बैठक में डीजीपी ने अफसरों से सामुदायिक पुलिसिंग को संस्थागत रूप देने और चेतना अभियान को बेहतर तरीके से लागू करने को कहा और इसके लिए बीट सिस्टम को मजबूत की बात कही। अब देखने वाली बात ये होगी कि बिलासपुर के बाद संभाग के बाकी जिलों में डीजीपी की नजर कब पड़ती है, जहां की पुलिस फिलहाल पिछड़ती दिख रही है।
1020 करोड़ के काम में 1250 करोड़ का खर्च!
दवा और मेडिकल उपकरण सप्लाई में करोड़ों के फर्जीवाड़ा के लिए चर्चित सीजीएमएससी का घोटाला सिंडिकेट चार मेडिकल कॉलेज के निर्माण के लिए जारी टेंडर को लेकर फिर चर्चा में है, जहां 52 और 53 प्रतिशत अधिक रेट पर टेंडर फाइनल कर दिए गए हैं। चारों मेडिकल कॉलेज निर्माण के लिए एक साथ टेंडर जारी किए गए और ऐसा जानबूझकर किया, ताकि बाकी को टेंडर से दूर किया जा सके।
हालांकि दवा और मेडिकल उपकरण सप्लाई में करोड़ों के फर्जीवाड़ा मामले में विभाग के कुछ अफसर और सप्लाई कंपनी के संचालक इस वक्त जेल में हैं। लेकिन, इस बार टेंडर को लेकर कोई विवाद न हो इसके लिए विभाग के पुराने घाघ लोगों ने अपने बचाव के लिए शर्तों का खेल कर दिया। मजेदार बात ये है कि जो काम 1020 करोड़ में पूरा होना है उस पर अब 1250 करोड़ खर्च होंगे। मामला अगर खुल भी जाए तो टेंडर की शर्तों की आड़ में अफसर बच निकलेंगे।
चारों मेडिकल कॉलेज का टेंडर डीवी प्रोजेक्ट को मिला है। वैसे भी भवन निर्माण में सीजीएमएससी का रिकार्ड अच्छा नहीं रहा है। हाल के सालों में इसने कई प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बनवाए हैं, जिनके प्लास्टर टूट कर गिर रहे हैं। भवन निर्माण की क्वालिटी तो दूर नल की टोंटी और बिजली कनेक्शन भी शार्ट हो रहे हैं। जिलों के सीएमओ बार.बार इसकी शिकायत करते रहे, मगर सुनवाई नहीं हो पाई। अब 4 मेडिकल कॉलेज निर्माण का ठेका एक ही कंपनी को मिलने से उसकी क्वॉलिटी क्या होगी, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा