
व्यंग लेख
” ठन-ठन की सुनो झनकार,ये दुनिया है काला बाज़ार ये पैसा बोलता है.. ये पैसा बोलता है ..! 90 के दशक में आई काला बाजार का गीत पुलिस विभाग में स्मित मुस्कान के साथ सभी गुनगुना रहे हैं। कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद कानून के कर्णधार कटाक्ष कर रहे हैं ” पुलिस डायरी में झोलझाल तो थानेदार होनहार जरूर होगा। ”
कहते हैं, सच्चाई और खुशबू को ज्यादा देर तक कैद नहीं रखा जा सकता। फर्क बस इतना है कि खुशबू के लिए फूल असली चाहिए, और थानेदार साहब तो कागज के फूलों से ही महक फैलाने निकले थे। अब सोचिए, कागज के फूलों से खुशबू कैसे आती? हां, धुआं जरूर आता है, और वो भी तब जब कोर्ट जैसी माचिस पास हो।
पाली पुलिस ने बनावट के वसूलों को आत्मसात कर सिंहासन जीत इंद्र की ओर पांव बढ़ाने की पूरी स्क्रिप्ट तैयार कर ली थी। कहानी में ट्विस्ट तब आया जब कोर्ट ने कहा “जरा स्क्रिप्ट इधर दो, देखते हैं”… और देखते ही बोले “अरे ये तो पूरी फिल्म ही फेक है!” नतीजा, एजीएम साहब के लिए गेस्ट हाउस यानी पुलिस कस्टडी का पास तुरंत तैयार करने का आदेश जारी हो गया।
एजीएम साहब को कौन बताए मर्डर जैसे मामले से नाम कटवाने का सपना ऐसा ही है जैसे अपने अपराधों को ‘मिनरल वाटर’ की जगह “गटर वॉटर” से धोना..! जनमानस भी मजे में शोर कर रही है “वाह रे थानेदार , तेरे खेल में तो सबकुछ था… बस रेफरी ईमानदार निकल आया।” कहा यह भी जा रहा कि पुलिस जांच के बाद ज्यादातर डायरी में नाम जोड़ती है लेकिन जीएम साहब का नाम हटाकर साबित कर दिया कि अभी भी पुलिस में कानून का भय पर नहीं बल्कि सिक्के खनखन करती लय पर शय (लेट जाना) की परंपरा खाकी की आंच को राख कर देती है।
एजीएम साहब की ट्रिक से उनका धन और कर्तव्यपथ दोनो नष्ट हो गया क्योंकि बचने के लिए जो खर्च किया था वो तो काम नहीं आया और ऊपर से कोर्ट की ललकार के बाद गिरफ्तारी की तलवार..राम जाने क्या होगा आगे!!