रायपुर। लोकसभा चुनाव के दौरान प्रत्याशियों के स्थानीय और बाहरी होने का मुद्दा छाया रहा। सबसे पहले यह आवाज कोरबा से उठी, जब भाजपा की नेत्री सरोज पांडेय को दुर्ग की जगह कोरबा से चुनावी मैदान में उतारा गया।
इस बीच कांग्रेस ने भी दुर्ग के कद्दावर नेताओं को सामाजिक समीकरण साधने के लिए दूसरे लोकसभा क्षेत्रों में उतार दिया था। ऐसे में भाजपा-कांग्रेस दोनों ही दलों के प्रयोग को मतदाताओं ने स्वीकार नहीं किया और बाहर का रास्ता दिखा दिया। भाजपा नेत्री सरोज पांडेय कोरबा से हार गईं और इसी तरह कांग्रेस के चार नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, पूर्व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू, पूर्व मंत्री डा. शिव डहरिया और विधायक देवेंद्र सिंह यादव को हार का सामना करना पड़ा।
कांग्रेस के जातिगत समीकरण को मतदाताओं ने नकारा
राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार जातिगत समीकरण साधने और बड़े नेताओं को प्रत्याशी बनाने की रणनीति में कांग्रेस ने लगभग सभी प्रत्याशियों के क्षेत्र बदल दिए थे। इनमें दुर्ग के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को राजनांदगांव, दुर्ग के पूर्व सांसद रहे ताम्रध्वज साहू को महासमुंद, रायपुर संभाग के पूर्व मंत्री डा. शिव डहरिया को जांजगीर-चांपा और दुर्ग-भिलाई के निवासी विधायक देवेंद्र यादव को बिलासपुर से चुनावी मैदान में उतारा गया था। इन नेताओं को मतदाताओं ने हार का रास्ता दिखाया।