बिलासपुर। न्यायधानी में पुलिस द्वारा झूठा मामला बनाकर मां-बेटी को गिरफ्तार कर जेल भेजने के मामले में हाई कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाई है। कोर्ट ने रिटायर्ड शिक्षिका मां और इंजीनियरिंग छात्रा उसकी बेटी को बिना वारंट और बिना अपराध के गिरफ्तार कर जेल भेजने के मामले में पुलिस को 3 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने माना है कि पुलिस ने दोनों के स्वतंत्रता के अधिकार पर हस्तक्षेप किया है।
पडोसी से झगड़ा और शिकायतकर्ता पर कार्रवाई
बिलासपुर के नंदन विहार, ग्रीन गार्डन कॉलोनी की रिटायर्ड शिक्षिका अंजू लाल और उनकी बेटी इंजीनियरिंग छात्रा ने हाईकोर्ट में दायर याचिका में बताया कि उनका पड़ोसी सड़क को घेर कर बाउंड्रीवाल बना रहा था। उन्होंने इसकी शिकायत नगर निगम व जिला प्रशासन के अधिकारियों से की। इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, बल्कि 16 सितंबर 2023 को सिविल लाइन थाने से पुलिस टीम उनके घर पहुंची। उन्होंने हमें थाने चलने के लिए कहा। जब हमने वारंट मांगा तो नहीं दिखाया और पूछने पर भी अपराध के बारे में नहीं बताया।
थाने में मारपीट का भी आरोप
याचिका के मुताबिक थाने में शिक्षिका व उसकी बेटी को रोककर रखा गया। शिक्षिका को पुलिस ने थप्पड़ भी मारे। उसके घर में कुछ छात्र किराये पर रहते हैं, जब वे पूछताछ के लिए थाने पहुंचे तो उन्हें भी पुलिस ने धमकी दी और इस मामले में दूर रहने की चेतावनी दी। उन्होंने अपने परिचितों व वकीलों से मदद के लिए पुलिस को गुहार लगाई तो उसने इंकार कर दिया। उन्होंने एफआईआर की कॉपी भी नहीं दी।
पुलिस की दलील – महिला ने ही पुलिस से किया था विवाद
इधर, हाई कोर्ट के नोटिस के जवाब में पुलिस की तरफ से बताया कि पुलिस शिकायत की जांच करने मौके पर पहुंची थी। पता चला कि पड़ोसी सीमांकन रिपोर्ट के आधार पर अपनी जमीन पर वैध तरीके से बाउंड्री वॉल बना रहे थे। मां- बेटी के विवाद करने की पुलिस से शिकायत की गई। शिकायत मिलने पर मौके पर पहुंची पुलिस से मां और बेटी ने विवाद किया। समझाइश के बाद भी रवैया नहीं बदलने पर दोनों को गिरफ्तार कर पुलिस थाने लेकर आई। इसके तत्काल बाद महिला के बेटे को उसके मोबाइल पर सूचना दी गई थी।पुलिस ने शाम को उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया और अगले दिन उन्हें जमानत मिल सकी।
स्वतंत्रता के अधिकार का हुआ उल्लंघन
हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने माना कि मां बेटी को पुलिस ने बेवजह गिरफ्तार कर संविधान में किसी नागरिक को अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन किया है। कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया है कि पीड़ित मां को एक लाख रुपये व उसकी बेटी को 2 लाख रुपये क्षतिपूर्ति 30 दिन के भीतर प्रदान करे।
गौरतलब है कि इससे पूर्व भी पुलिस द्वारा कुछ मामलों में आरोपी को नियम के विरुद्ध गिरफ्तार किये जाने पर हाई कोर्ट, बिलासपुर की पुलिस को फटकार लगा चुकी है। बावजूद इसके पुलिस द्वारा ऐसे मामले में कार्रवाई की गई जिसमें गिरफ्तार मां-बेटी खुद पीड़ित थे। नियम यह भी है कि जिस अपराध में 7 साल से कम की सजा हो, तब उसके आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए। पुलिस ने केवल इस आधार पर कि मां-बेटी ने जवानों से झगड़ा किया, उन्हें गिरफ्तार करके जेल तक भेज दिया। हालांकि यह भी देखने वाली बात है कि दोनों को जिस मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, उसने भी मामले को गंभीरता से नहीं लिया और मां-बेटी को जमानत पर छोड़ने की बजाय जेल भिजवा दिया।
बहरहाल हाई कोर्ट ने इस मामले में फैसला देकर उन पुलिस कर्मियों और अधिकारियों को सबक सिखाने का प्रयास किया है, जो कानून को ताक पर रखकर मनमानी कार्रवाई करते हैं।