But beyond but: चार थानेदारो की चर्चा, किसके नाम का छपा है पर्चा,13 सौ रुपये से ढाई सौ करोड़ का सफर..अब नहीं रहा पार्टी में जलवा,हाईकोर्ट के हंटर से वन विभाग को लगा करंट
🔶चार थानेदारो की चर्चा, किसके नाम का छपा है पर्चा..?
कहते है बदनामी और चर्चे अक्सर उन्ही के होते है, जो नामी होते हैं…!! यह लाइन के जिले चार थानेदारो पर सही बैठती है। थानेदारो के विभागीय कर्मचारी आश्चर्य चकित होकर कह रहे क्या ट्रांसफर का सच में छप गया है पर्चा..!
दरअसल बात राज्य में चल रहे स्थानांतरणों को लेकर है। हर शाम पीएचक्यू से निकलने वाली फाइल पर थानेदारो की नजर है। शनिवार को पुलिस मुख्यालय से चिड़िया उड़ी कि शहर के चार सुपरकॉप का स्थानांतरण गृहमंत्री के क्षेत्र में हुआ है। फिर क्या था सभी एक दूसरे को “सचल दूरभाष यंत्र” से पूछने लगे कि लिस्ट पक्की है क्या, और है तो किसका किसका नाम है..! सूत्रधार की माने तो एक टीआई तो ट्रांसफर की बात सुनते ही इतने मायूस हो गए कि मानो उनकी लैला लूट गई हो। चिंतित सभी अपने पोस्टिंग के सूत्र को धार करते सूची को चेक करा रहे है। सूत्रधार की माने जिन थानेदारो के स्थानांतरण की चर्चा है वे अभी कोरबा की पिच टिके रहना चाहते है। खुफिया विभाग की माने तो जिस तरह ईडी और आईटी बंद लिफाफा देकर रेड करती है ठीक उसी शैली में स्थानांतरण भी हुआ। अब बंद लिफाफा किसके भाग्य के ताले की चाबी अपने मन की लगी है, ये तो लिफाफा खुलने पर पता चलेगा। टीआई ग्रुप में चल रही चर्चाओं पर गौर करे तो वे कह रहे कि स्थानांतरण की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि बिना आग लगे धुंआ नही उठता। सो स्थानांतरण की चर्चा और पीएचक्यू का पर्चा वास्तविक स्थिति किन थानेदारों पर फटता है यह तो लिफाफा खुलने पर ही पता चलेगा।
🔶13 सौ रुपये से ढाई सौ करोड़ का सफर..
“राख में मिल गया” “राख ने खाक कर दिया” जैसे नकारात्मक प्रभाव वाली बातें तो आपने सुनी होगी लेकिन राख ने खाक में पड़े की साख बढ़ा दी हो, ऐसा कभी नही सुना है। ताज़ा किस्सा एक ऐसे उद्यमी की है जिनका राख से साख बढ़ा है।
अब तक पट्टा ,सट्टा और कट्टा के दम पर शहर में लोगो करोड़पति बनते सुना या देखा होगा, लेकिन शहर के एक उद्यमी हंसी खेल में ही करोड़पति बन गए। मात्र 13 सौ रुपये में व्यापार शुरू कर ढाई सौ करोड़ की ऊंचाई पर जाकर शहर सेठों को चुनौती दी गई है।
अब आप सोच रहे होंगे कि शहर में कम अवधि में जमीन से आकाश की यात्रा करने वाले ये साहब हैं कौन..? और उनकी कर्मभूमि क्या है..? तो बताते चले राखभूमि से रकम निकालने का धंधा है। ये बात अलग है कि कागजी हेर फेर में चतुर उद्यमी के बयान के तीर उलटे चल रहे हैं। एक पार्टी में उन्होंने ये तो बताया कि कैसे 13 सौ रुपये की राशि को ढाई सौ करोड़ रुपये तक ले गए ,लेकिन उन्होंने रातो रात करोड़पति बनने के पीछे की कहानी रहस्य नहीं खोला। सो अब हम बताते है की कैसे 13 सौ रुपये से धंधा आगे बढ़ा। सूत्रधार की माने तो उद्यमी ने पूर्वर्तीय सरकार में जब राख का खेला शुरू हुआ तो वे फर्जी तरीके से राख परिवहन कर अपनी साख बढ़ाते गए। कहा तो यह भी जा रहा कि सीएसईबी पॉवर प्लांट के राख परिवहन के मामले में करोड़ो का गोल माल है। सो अनुमान लगाया जा सकता है कि कुछ बरस पहले जो पाई पाई के लिए मोहताज थे उन्होंने राख से कितना रस निकाला होगा..! स्पष्टतः गलत तरीके क्रेडिनशियल भी बना होगा और बैंक से लोन भी। कुल मिलाकर यह कह सकते है कि पूरा ढाई सौ करोड़ का साम्राज्य रेत के महल की शैली पर खड़ा है। जिले में हुए राख घोटाले की सच्चाई सामने आने के बाद महानायक अमिताभ बच्चन के संवाद “मकान ऊंचा बनाने से इंसान ऊंचा थोड़ी हो जाता है ” की याद बरबस कानों में गूंज जाती है।
🔶बिन कुर्सी के नेता, अब नहीं रहा पार्टी में जलवा..
उगते सूरज को सभी नमस्कार करते हैं इस शैली पर शहर की राजनीति भी करवट बदल रही है। बात कटघोरा में हुए सीएम सभा की है जहां शहर के त्रिमूर्ति कहे जाने नेताओं को कुर्सी भी नसीब नहीं हुई। चर्चा है कि फर्श से अर्स की राजनीति करने वाले शहर के भाजपाई नेता व उनके साथियों का अब पार्टी में वो रुतबा नहीं रह गया है जो पहले था। वैसे भी बीजेपी प्रदेश हाईकमान अब एक नई लाइन पार्टी के अंदर तैयार करना चाहता है।
जिसमें थक चुके नेताओं की उपयोगिता सलाहकार भर की हो। ऐसे समय मे पूछपरख घटती है तो मलाल नहीं होना चाहिए। क्योंकि राजनीति का ककहरा सीखने वाले को ही तिकड़ी ने गच्चा देने में कोई कसर नहीं छोड़ा था। सो कुर्सी नहीं मिली तो इसमें हायतौबा करना बेकार है, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच अपने नेताओं को बिना कुर्सी घूमते देख तकलीफ तो होती है। आने वाले समय में अगर कटघोरा में पार्टी की नई लाइन सबसे आगे दिखे तो हैरान नहीं होना चाहिए।
🔶किन्तु परन्तु से आगे…
भिलाई के कुख्यात गुंडा बदमाश अमित जोश को पुलिस ने एनकाउंटर में मारा गिराया। पुलिस से बचने के लिए अमित जोश ने सात से आठ गोलियां चलाई, जिसमें से एक गोली पुलिस की गाड़ी से बरामद हुई। आखिर में अमित का वही अंजाम हुआ जो गुंडा बदमाशों का होता रहा है। आत्म रक्षा के लिए पुलिस की जवाबी फायरिंग में अमित की मौत हो गई।
अमित के एनकाउंटर से भिलाई की जनता को उसके आतंक से मुक्ति मिल गई। उसकी मौत के बाद पुलिस ने बिना किन्तु परन्तु किए न्यायिक दंडाधिकारी के सामने डाक्टरों की टीम से पोस्टमार्टम करा कर इसकी रिपोर्ट नेशनल ह्यूमन राइट्स कमिशन को भेज दिया।
असल में बीते 5.6 साल में छत्तीसगढ़ में जो हालत बन गए थे उससे गुंडा बदमाश बैखौफ हो गए थे..। कई बार तो पुलिस को अपनी किरकिरी करानी पड़ी। कुछ जिलों के कलेक्टर और एसपी तक को बदलना पड़ा। पिछले महीने सूरजपुर में निगरानी बदमाश कुलदीप साहू द्वारा पुलिस कांस्टेबल तालिब शेख की पत्नी और बेटी की हत्या ने तो पूरे देश को झकझोंर कर रख दिया।
और अब जब एक पुराने मामले में भिलाई पुलिस अमित जोश को पकड़ने पहुंची तो उसने एक एक करके 8 गोलियां पुलिस पर दाग दी। आखिरकार आत्म रक्षा के लिए पुलिस की ओर से 16 राउंड जवाबी फायरिंग करना पड़ा। पोस्टमार्टम में पता चला है कि हिस्ट्रीशीटर अमित जोश को आठ गोलियां लगी थी। वो भागते हुए पुलिस पर लगातार फायरिंग कर रहा था। ऐसे हालात में पुलिस को आत्मरक्षा के लिए जवाबी कार्यवाहीं करने का अधिकार तो मिला है और पुलिस ने इसी अधिकार का प्रयोग करते हुए अमित को मार गिराया।
जो भी प्रदेश में कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी सरकार की है और इसके लिए पुलिस को अपराधियों की धरपकड़ के लिए मिले कानूनी अधिकार का प्रयोग करने की स्वतंत्रता होनी ही चाहिए ताकि अमित जोश जैसे गुंडा बदमाश पुलिस पर फायरिंग करने जैसा दुसाहस न कर सके तभी प्रदेश में अमन चैन की उम्मीद की जा सकती है।
🔶हाईकोर्ट के हंटर से वन विभाग को लगा करंट
छत्तीसगढ़ में कंरट से जंगली हाथियों की मौत के मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है और इस मामले में सरकार के दो विभागों से जवाब मांगा गया है। इस बीच मुंगेली जिले के खुड़िया इलाके एक खबर निकलकर आई है। जिसमें कहा गया है कि हाथियों का झुंड दुल्लापुर, नवागांव, डोंगरीगढ़ सरगढ़ी और झिरिया इलाके में विचरण कर रहा है।
और हाथी के रहवासी क्षेत्रों में बिजली सप्लाई पर रोक लगाने के लिए वन विभाग ने निर्देश जारी किया है। ताकि करंट तार की चपेट में आने से हाथी की मौत ना हो। साफ कहे तो हाईकोर्ट के हंटर से वन विभाग को कंरट लगा है। शायद विभाग को लग रहा है कि अगर तार की चपेट में आने से हाथी की मौत होती है तो वो अपने जिम्मेदारी बच निकलेगा।
तो क्या हाथी के रहवासी क्षेत्रों में बिजली सप्लाई पर रोक देने भर से हाथियों को सुरक्षित आवास मिल जाएगा..और वन विभाग अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएगा। दरअसल छत्तीसगढ़ के अलावा दक्षिण और पूर्वोंतर के कई राज्यों में जंगली हाथी सालों से विचरण रहे हैं।
इन राज्यों ने अपने वन विभाग के कर्मचारियों को मानव हाथी द्वंद रोकने के लिए प्रशिक्षित किया है। छत्त्तीसगढ़ सरकार को भी चाहिए कि वो कंरट से जंगली हाथियों की मौत के मामले में एक दूसरे विभाग पर जिम्मेदारी डालकर अपनी जवाबदेही से बचने की आदत को बदल लें साथ ही अपने कर्मचारियों को हाथी मानव के सह अस्तित्व एवं सुरक्षित बसाहट का प्रशिक्षण दिलाए ताकि जानमाल की हानि को रोका जा सके।