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DMF से बिना टेंडर के खरीदे 2 करोड़ के ब्लेजर, अब ये टीम करेगी जांच

बिलासपुर। कांग्रेस की सरकार की पहल पर प्रदेश भर में बने आत्मानंद स्कूलों को हर वर्ष मिलने वाले फण्ड से होने वाली खरीदी में गड़बड़ी का एक और किस्सा उजागर हो गया है। बिलासपुर जिले में जिला खनिज न्यास (DMF) से मिले फण्ड का दुरुपयोग कर स्वामी आत्मानंद स्कूलों (सेजेस) के छात्रों को ब्लेजर, ट्रैक सूट और टी-शर्ट की खरीदी में भारी गड़बड़ी का मामला सामने आया है। जिले के 31 स्कूलों के लिए की गई इस खरीदी की महालेखाकार की टीम द्वारा जल्द ही ऑडिट किये जाने की खबर है। इससे शिक्षा विभाग में हड़कंप मचा हुआ है, क्योंकि DMF की निधि से यह कोई पहली गड़बड़ी नहीं है, बल्कि कई जिलों में तो DMF से ही आत्मानंद स्कूलों का पूरा खर्च चलाया जा रहा है।

 

दोगुनी कीमत पर खरीदे गए ब्लेजर

दरअसल बिलासपुर जिले में 31 आत्मानंद स्कूलों के लिए ब्लेजर और अन्य सामग्री के वितरण के लिए डीएमएफ से 2 करोड़ रुपये जारी किए गए थे। शिकायत हैं कि खरीदी प्रक्रिया में न तो टेंडर जारी किए गए और न ही कोटेशन मंगवाए गए। यहां बाजार दर से दोगुनी कीमत पर ब्लेजर खरीदने का आरोप है। यह ब्लेजर बाजार में 900 से 1200 रुपये में उपलब्ध हैं, मगर स्कूलों ने इसे 2500 रुपये प्रति ब्लेजर की दर से खरीदा।

 

बिना टेंडर सी मार्ट को दे दिया आर्डर

शिकायत है कि सरकंडा स्थित सी-मार्ट को बिना प्रक्रिया के सामग्री आपूर्ति का आदेश दे दिया गया। इसने ब्लेजर बनाने का ठेका एक पंजीकृत समूह को दिया। आपूर्ति किये गए इन ब्लेजर्स की गुणवत्ता और लागत में भारी अंतर पाया गया है।

सरकारी नियमों के अनुसार, 1 लाख से अधिक लागत वाली किसी भी खरीदारी के लिए ओपन टेंडर की प्रक्रिया अनिवार्य है, लेकिन इस मामले में इसे पूरी तरह नजरअंदाज किया गया।

कई स्कूलों ने आर्डर ही नहीं दिया

 

अब तक की छानबीन से पता चला है कि पिछले सत्र में DEO द्वारा यह राशि जिले के 31 स्कूलों को भेजी गई। इसके बाद खरीदी का ऑर्डर नहीं किया गया है, क्योंकि अधिकांश बच्चों ने हाउस टी-शर्ट की खरीदी कर ली थी। यह भी पता चला कि सी-मार्ट को सिर्फ 9 स्कूलों से ही ऑर्डर मिले, लेकिन ड्रेस की सप्लाई कहां से होगी, यह तय नहीं किया गया था।

डीएमएफ के जरिए स्वामी आत्मानंद स्कूलों के 10वीं, 11वीं और 12वीं के बच्चों के लिए ब्लेजर, ट्रैक सूट और टी-शर्ट की खरीदी होनी थी। इसके लिए 31 जुलाई को 3.90 करोड़ रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति जारी की गई थी। इसे उच्च प्राथमिकता से पूरा करना था।

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