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Bihar Assembly Elections : सियासी समीकरणों की नई तस्वीर…! सियासी समीकरणों की नई तस्वीर…जातिगत गणित बनाम विकास का एजेंडा…किसका पलड़ा भारी…?

बेरोज़गार युवा, नाराज़ किसान, चुनावी नतीजों पर असर

पटना, 16 अक्टूबर। Bihar Assembly Elections : बिहार विधानसभा चुनाव केवल एक राज्य का राजनीतिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र की जड़ से जुड़ा वह आईना है जिसमें सामाजिक चेतना, जातिगत संरचना, विकास की दिशा और राजनीतिक इच्छाशक्ति की परछाइयाँ साफ दिखाई देती हैं।

हर पांच साल में बिहार की सियासत एक नई करवट लेती है, और यह करवट केवल सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि विचारधाराओं, वादों और नेतृत्व की परीक्षा भी होती है।

2025 का चुनाव ऐसे समय में आ रहा है जब राज्य कई मोर्चों पर चुनौतियों से जूझ रहा है, बेरोज़गारी, पलायन, शिक्षा की बदहाली, और कानून-व्यवस्था जैसे जमीनी मुद्दे मतदाता के मन में जगह बना चुके हैं। वहीं, जातीय समीकरण और गठबंधन की गणित फिर से राजनीतिक पटल पर हावी है।

इस चुनाव में एक ओर जहां तेजस्वी यादव युवा मतदाता और सामाजिक न्याय की राजनीति के सहारे सत्ता तक पहुंचने की कोशिश में हैं, वहीं बीजेपी मोदी ब्रांड, केंद्रीय योजनाओं और संगठित कैडर के बलबूते अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखना चाहती है। नीतीश कुमार का अगला कदम भी चुनावी समीकरणों को नया मोड़ दे सकता है।

ऐसे में यह चुनाव न सिर्फ सत्ता के लिए संघर्ष है, बल्कि यह भी तय करेगा कि बिहार आगे विकास के रास्ते पर बढ़ेगा या फिर जातिगत ध्रुवीकरण की पुरानी लकीरों पर ही चलेगा।

बिहार विधानसभा चुनाव भारतीय राजनीति का एक अहम पड़ाव होता है, जहां परंपरा, जातिगत समीकरण, विकास के मुद्दे और नेताओं की छवि सभी मिलकर परिणाम को आकार देते हैं। वर्ष 2025 के चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज है और सभी प्रमुख दलों ने जमीन पर सक्रियता बढ़ा दी है।

राजनीतिक परिदृश्य: कौन-कहाँ खड़ा है?

1. एनडीए (भारतीय जनता पार्टी+अन्य)

एनडीए इस बार बिना जेडीयू के मैदान में है (यदि स्थितियाँ ऐसी ही रहती हैं)। बीजेपी की रणनीति मोदी फैक्टर, केंद्रीय योजनाओं और हिंदुत्व के मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती दिख रही है। पिछली बार की तुलना में उन्हें संगठनात्मक रूप से ज्यादा मज़बूत माना जा रहा है, पर नीतीश कुमार की अनुपस्थिति से कुशवाहा/कायस्थ/अति पिछड़ा वर्ग में सेंध की चुनौती है।

2. महागठबंधन (राजद+कांग्रेस+वामदल)

तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन पिछली बार अच्छी बढ़त में था। बेरोज़गारी, महंगाई, और “न्याय के साथ विकास” जैसे मुद्दे उनके कैंपेन का आधार हैं। मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण के अलावा वाम दलों के ज़रिए किसान/मजदूर वर्ग तक पहुंचने की कोशिश जारी है।

3. जेडीयू (नीतीश कुमार)

अगर जेडीयू अकेले या किसी तीसरे मोर्चे के साथ चुनाव में उतरती है, तो यह “किंगमेकर” के बजाय “किंग” बनने की कोशिश कर सकती है। हालांकि नीतीश की लोकप्रियता में गिरावट है, परंतु उनका प्रशासनिक अनुभव और अति पिछड़ों पर पकड़ को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।

4. छोटे दल और नए चेहरे

विकासशील इंसान पार्टी (VIP), जन अधिकार पार्टी (पप्पू यादव), और AIMIM जैसे दल सीमित प्रभाव वाले भले हों, लेकिन जातीय समीकरणों को प्रभावित करने की शक्ति रखते हैं। इनके वोट काटने की क्षमता मुख्यधारा दलों की रणनीति में बड़ा फैक्टर है।

मुख्य मुद्दे: मतदाता क्या सोच रहा है?

मुद्दा प्रभाव
बेरोज़गारी युवाओं में असंतोष, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में
शिक्षा और परीक्षाओं में अनियमितता छात्रों में गुस्सा
महंगाई गृहणियों और मध्यम वर्ग पर असर
कानून-व्यवस्था अपराध दर, महिलाओं की सुरक्षा पर चिंता
जातीय पहचान अभी भी वोटिंग पैटर्न का अहम हिस्सा
विकास बनाम जातिवाद भावनात्मक बनाम व्यावहारिक मतदाता वर्ग

जातिगत समीकरण: चुनाव का गणित

बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं। लगभग 200 से ज़्यादा सीटों पर जातीय समीकरण नतीजे तय करते हैं। संक्षेप में, यादव और मुसलमान (राजद) आबादी का लगभग 30% हिस्सा हैं; अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) और कुशवाहा और कुछ ऊंची जातियां (जदयू/भाजपा) निर्णायक समूह हैं; ब्राह्मण/भूमिहार/राजपूत ( ऊंची जातियां) भाजपा के पारंपरिक मतदाता हैं और दलित (पासवान, मुसहर) एक बिखरा हुआ समर्थन आधार बनाते हैं, जिनमें से कुछ चिराग पासवान का समर्थन करते हैं।

क्षेत्रीय समीकरण और सीटों की रणनीति

  • कोशी/सीमांचल– AIMIM और राजद का प्रभाव
  • मगध/पटना क्षेत्र– बीजेपी और जेडीयू का गढ़
  • बोचहा, दरभंगा, मधुबनी– मिथिला क्षेत्र में भावनात्मक अपील का असर
  • छपरा, सिवान, गोपालगंज– सामाजिक समीकरणों की बारीक परख ज़रूरी

संवाभवनाएं और निष्कर्ष

बिहार चुनाव में ‘नेतृत्व बनाम संगठन’, ‘जाति बनाम विकास’, और ‘स्थानीय बनाम राष्ट्रीय मुद्दे’ टकराते हैं। 2025 में भी कोई स्पष्ट लहर नहीं दिख रही, जिससे त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना प्रबल है। ऐसे में सीट बंटवारा, छोटे दलों की भूमिका, और अंतिम समय की रणनीति ही तस्वीर को साफ करेंगी।

संभावित परिदृश्य
यदि महागठबंधन एकजुट रह पाता है और युवा मतदाताओं को साध लेता है, तो वह स्पष्ट बढ़त बना सकता है। वहीं बीजेपी यदि जमीनी संगठन और मोदी ब्रांड को मजबूत बनाए रखती है, तो सत्ता परिवर्तन कठिन होगा। जेडीयू की भूमिका ‘बैलेंस ऑफ पावर’ की हो सकती है।

बिहार विधानसभा चुनाव केवल सत्ता का हस्तांतरण नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना, राजनीतिक परिपक्वता और लोकतंत्र के विविध रंगों का उत्सव है। यह देखना रोचक होगा कि अगला जनादेश किन मुद्दों और नेतृत्व के आधार पर तय होता है।

 

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