भारत में "वन नेशन, वन इलेक्शन" का मतलब है कि लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएं। आजादी के शुरुआती वर्षों में (1952-1967) यह प्रक्रिया अपनाई जाती थी, लेकिन राज्यों के पुनर्गठन और लोकसभा के समय से पहले भंग होने के कारण यह चक्र टूट गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक देश-एक चुनाव पर जोर देते हुए कहा कि इससे सरकार चार वर्षों तक शासन और नीतियों पर ध्यान केंद्रित कर सकेगी और केवल एक वर्ष चुनावी राजनीति के लिए रहेगा। इससे सरकारी नीतियां तेजी से लागू होंगी और सुधारों को गति मिलेगी।
कोविंद कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, एक साथ चुनाव कराने से भारत की राष्ट्रीय रियल जीडीपी ग्रोथ में 1.5 प्रतिशत की वृद्धि होगी। वित्त वर्ष 2023-24 में यह 4.5 लाख करोड़ रुपये के बराबर है, जो देश के स्वास्थ्य और शिक्षा बजट का बड़ा हिस्सा है।
लगातार चुनाव होने से निवेशक अनिश्चितता का सामना करते हैं। एक साथ चुनाव कराने से नेशनल ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (निवेश) का अनुपात 0.5 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है, जो अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करेगा।
एक साथ चुनाव होने पर सार्वजनिक खर्च में 17.67 प्रतिशत की वृद्धि होगी, जिसमें पूंजीगत खर्च का हिस्सा अधिक होगा। पूंजीगत खर्च में वृद्धि से दीर्घकालिक जीडीपी ग्रोथ को मजबूती मिलेगी।
रिपोर्ट के अनुसार, एक साथ चुनाव से महंगाई में 1.1 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है। इससे आम जनता को राहत मिलेगी और आर्थिक स्थिरता बढ़ेगी।
चुनाव के बाद सार्वजनिक खर्च में वृद्धि से राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है। चुनाव के दो वर्ष पहले और बाद के समय में घाटा 1.28 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है।
अमेरिका, फ्रांस, कनाडा और स्वीडन जैसे देशों में "वन नेशन, वन इलेक्शन" की व्यवस्था पहले से लागू है। अमेरिका में हर चार वर्ष में एक ही दिन राष्ट्रपति, कांग्रेस और सीनेट के चुनाव होते हैं।