पुलिस का एक्शन .गोल्ड बेचने वालों की बढ़ी टेंशन
फ़्लोरा मैक्स कंपनी के ठगराजो पर पुलिस के एक्शन ने स्कीम देकर गोल्ड बेचने वालों की टेंशन बढ़ा दी है।
शहर के ज्वेलर्स ग्राहकों को लोकलुभावन स्कीम देकर इन्वेस्ट कराने और सस्ते में ज्वेलरी देने का झांसा दे रहे हैं, जबकि लॉटरी और स्कीम पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
दरअसल राम लखन का सुपरहिट गाना की लाइन “दो बोल मीठे बोल के माल बेचो कम तोल के” की शैली में ज्वेलर्स संचालक ग्राहकों को 11 महीना जमा करने पर इतना इंटरेस्ट ..18 महीना जमा करने पर इतना फायदा…आदि आदि की स्कीम देकर गोल्ड बेचने का कारोबार बढ़ा रहे है।
चिटफंड की तरह चल रहे इस स्वर्ण आभूषण कारोबारियों पर अब तक पुलिस नजर नही पड़ी है। यही कारण है कि ग्राहकों को झांसा देकर कारोबार करने वाले शहर के ज्वेलर्स दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की करते हुए एक के बाद एक शोरूम चला रहे है। सूत्रधारों की माने तो महिलाओ को स्वर्ण आभूषण का लालच देकर शांति से ठगने का काम चल काम करने वाले संचालकों के हाई प्रोफाइल तंत्र को देख ठगी के शिकार होने वाली महिलाएं शिकायत करने से कतराती हैं। जिसका फायदा ज्वेलर्स खूब उठाते है । कहा तो यह भी जा रहा कि निहारिका क्षेत्र के एक कारोबारी की शिकायत भी हुई थी। हालांकि जांच हुई या नही इसकी जानकारी नही मिल पाई है लेकिन लोकलुभावन स्कीम जिस प्रकार से लॉन्च की जा रही है उससे इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि फ़्लोरा मैक्स की तरह महिलाओं को ठगने बड़े व्यापारी भी तैयार बैठे हैं। जो मौका पाकर नकली सोना भी बेचने से गुरेज नही करेंगे। हालांकि अब फ़्लोरा मैक्स कंपनी के ठगराजो पर हो रही कार्रवाई से गोल्ड कारोबारी भी टेंशन में है।
माइनिंग के दफ्तर में जायसवाल का क्या काम..
सन 1981 में अमिताभ अभिनीत फ़िल्म लावारिस का गाना मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम माइनिंग डिपार्टमेंट में सूरताल कर रहा है और ऑफिस जाने वाले लोग चटखारे मारते हुए कह रहे माइनिंग दफ्तर में जायसवाल का क्या काम..!
बात मड़वारानी के समीप पत्थर खदान की लीज के दम पर पहाड़ की गिट्टी बेचकर पैसा बनाने वाले मातादीन जायसवाल की है।
जो माइनिंग विभाग में बैठकर रेत तस्करो को रॉयल्टी बांट रहें हैं। कहा तो यह भी जा रहा है खनिज संपदा का दोहन करने में माहिर जायसवाल इन दिनों खनिज विभाग के अघोषित सलाहकार बनकर खड़े है जो गिट्टी मुरुम मिट्टी और रेत के दम पर अफसरों को नियमों का पाठ पढ़ा रहे हैं।
कहा तो यह भी जा रहा कि मातादीन जायसवाल दिनभर माइनिंग दफ्तर में बैठकर रेत तस्करो के लाइजनर की भूमिका निभा रहे हैं । सूत्रधारों की माने तो जायसवाल माइनिंग का वो वॉल ( दीवार) बन गया जिसके गिरने पर खनिज के खास लोगो का पर्दाफाश हो जाएगा। कहा तो यह भी जा रहा है पहाड़ काटकर गिट्टी बेचने वाले जायसवाल की गिद्ध नजर अब ग्रामीण अंचल के रेट घाटों पर टिकी है। सूत्रों की माने तो कुदमुरा, बगधर, चिचोली और गितारी रेत घाट को पंचायत प्रतिनिधियो से सांठगांठ कर गैर जिले के तस्करो को सौंपने में मातादीन अहम रोल में है। खनिज तस्करों के लिए उनकी रोल अदायगी को देखकर जनमानस में चाय पर चर्चा है “माइनिंग अधिकारी बने दोस्त तो मातादीन की मौज हो गई है।”
धंधे के लिए राजनीति या राजनीति के लिए धंधा..?
शहर की राजनीति धंधा और चंदा तक ठंढा होकर रह गया है। अब पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता और कट्टरता वाले भी धंधे के लिए सत्ता दल के पास नतमस्तक के लिए तैयार खड़े है।
हम बात शहर में लगे बड़े बड़े होर्डिंग की कर रहे है नेता जी के अचानक हृदय परिवर्तन को लेकर जनजन कहने लगे है ये धंधे के लिए राजनीति है या राजनीति के लिए धंधा..!
मामला कोयले के कालिख से हाथ रंगने वाले नदी उस पार के नेता की है। जिसने हाथ के दम पर सब कुछ पाया और जब देखा कि धंधा अब नई सरकार में फंदा बन सकता है सो बंदर की तरह गुलाटी मारते हुए हाथ का साथ छोड़कर मुरझाने से बचने खिलने शरण में पहुंच गये है।
वैसे तो कोरबा जिला का इतिहास रहा है कि धंधे के माध्यम से राजनीति में लोग आते है और फिर धंधा बचाने के लिए पाला बदलने के लिए कोई गुरेज नही करते। यही हाल इन दिनों नदी उस पार के कोयला कारोबारी का है। जिन्होंने तिरंगा का दामन छोड़कर कमल फूल अपनाना चाहा तो कमल फूल वालो ने किनारा कर दिया लेकिन अब भगवा का दामन थामकर बजरंगी बन गए हैं। ताम झाम के साथ सोसे बाजी में माहिर नेता कम व्यापारी अपनी डूबती कश्ती को बचाने और सरकारी महल में जाने से बचने पैंतरा बदल दिया है। किसी समय पूर्व मंत्री के खासमखास कहलाने वाले नेता ने लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस से किनारा करते हुए धंधे को धार देने के लिए हर वो काम करने तैयार हो गए जिससे उनका धंधा निर्बाध चलता रहे। नेता जी के गुलाटी मारने की नीति को जनचर्चा है “बाबू ये गंदा है पर क्या करे बेचारा है तो धंधा..!”
एक जांचा दूजा परखा…दोनों के नाम रिकार्ड
पिछले सप्ताह गृह मंत्रालय ने चार आईपीएस अफसरों के तबादला आदेश जारी किए। वैसे तो ये विभाग के रुटिन वर्क हैं मगर, रायपुर एसएसपी आईपीएस संतोष सिंह को बदलकर लाल उम्मेद सिंह को राजधानी की जिम्मेदारी दी जाने की चर्चा हो रही है। वो इसलिए कि दोनों अफसर सरकार की गुडबुक में रहे हैं और दोनों के ट्रेक रिकार्ड को देखते हुए पीएचक्यू के जानकारों को इस अदलाबदली से कोई अचरज नहीं हुआ।
वैसे भी आईपीएस संतोष सिंह बिना ब्रेक लगातार नौ जिलों में कप्तानी करके रिकार्ड बना चुके हैं। रमन सरकार के दौरान कोंडागांव और नारायणपुर के एसपी रहे फिर भूपेश सरकार में महासमुंद, रायगढ़, कोरिया, कोरबा और बिलासपुर में शानदार पारी खेली। दिसंबर 2023 में बीजेपी की सरकार बनी तो उन्हें रायपुर पोस्टिंग मिली। अब वो पुलिस मुख्यालय सहायक पुलिस महानिरीक्षक की जिम्मेदारी संभालेंगे। महकमें में चर्चा है कि उनके ट्रैक रिकार्ड देखते जल्दी की कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है।
रही बात लाल उम्मेद सिंह की तो वो भी जांच परखकर रायपुर लाए गए हैं। वैसे जब लाल उम्मेद सिंह को सीएम सिक्यूरिटी का चार्ज मिला था तभी अटकलें लग रही थीं कि उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिलने वाली है। इससे पहले भी लाल उम्मेद सिंह दो बार रायपुर के एडिशनल एसपी रह चुके हैं और रमन सरकार के विश्वास पात्र अफसरों में गिने जाते रहे हैं। 2011 बैच के अफसर लाल उम्मेद सिंह राज्य पुलिस सेवा से आए हैं। अब देखना ये होगा कि लाल उम्मेद सिंह रायपुर में अपनी नई भूमिका में कैसा काम करते हैं।
आओ अब लौट चले..
पिछले दो चुनाव में कांग्रेस नेताओं की आपसी सिर फुटव्वल ने पार्टी को सत्ता से बाहर ला पटका और हाल में हुए रायपुर दक्षिण विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को बड़ी मार्जिन से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि हार का कारण पता करने दिल्ली दरबार से वीरप्पा मोइली को छत्तीसगढ़ भेजा भी गया था मगर प्रदेश के टॉप नेताओं की चिकचिक में उसका क्या हुआ पता नहीं..।
लेकिन कांग्रेस के जमीनी नेता हार का कारण खुले आम बता चुके हैं। अब जब अगले महीने स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव होना है तो उससे पहले पार्टी छोड़कर गए नाराज नेताओं को मनाने का सिलसिला शुरु हो गया है। कांग्रेस जान चुकी है अगर नाराज नेताओं को नहीं मनाया गया तो आगे 4 साल बाद होने वाले चुनाव में पार्टी को एक बनाए रखना मुश्किल होगा।
इसके लिए पार्टी में वापस लौटने वाले नेताओं के आवेदन पर विचार करने के लिए पीसीसी की कमेटी भी बनी है। लेकिन, इस कमेटी में कांग्रेस के कद्दावर नेता टीएस सिंहदेव को शामिल नहीं किया गया है। ऐसे में पीसीसी की कमेटी खुद सवालों में आ गई है। ऐसे में देखने वाली बात ये होगी कि कांग्रेस के नाराज नेताओं की घर वापसी में कमेटी कहां तक सफल होती है..या फिर सिर फुटव्वल से…।