कोरबा। बालोद के ठेकेदार और अधिकारियों ने मिलकर डीएमएफ की खान को लूटने की शुरुवात की थी। सरकार बदलने के बाद पहली महिला आईएएस अफसर ने अपने करीबी सहायक खनिज अधिकारी की पोस्टिंग कराकर नोडल अधिकारी बनाया था।नोडल बनते ही प्रदेश भर के घोटेलेबाजो का कोरबा गढ़ बनते गया। सहायक माइनिंग अफसर के दफ्तर से लूट की स्क्रिप्ट लिखी गई थी।
बता दें कि डीएमएफ घोटाला का नाम आते ही कोरबा का नाम जुबा पर आ ही जाता है। दरअसल डीएमएफ घोटाले की शुरुवात पूर्वर्तीय सरकार के कलेक्टर की पोस्टिंग के बाद शुरू हुई। माननीया देखा कि जिले में तो शानदार पिच बना हुआ है जिसमें अच्छा रन बनाया जा सकता है। सो माननीया ने एक डीएमएफ फंड की रकम खर्च के ओपनर को माइनिंग में तैनात किया। उनका तरकीब चल निकला और एक के बाद बालोद और दुर्ग के ठेकेदारों का जमावड़ा माइनिंग दफ्तर में लगने लगा।
इस दौरान शिक्षा विभाग, कृषि विभाग, उद्यानिकी और सतरेंगा के नाम पर खूब रकम उड़ाया गया। अफसरो और ठेकेदारों ने खूब माल कमाया। कहा यह तो यह भी जाता रहा है रानू साहू के कार्यकाल से बड़ा घोटाला नोडल अधिकारी के कार्यकाल में हुआ है। इसके बाद पूर्वर्तीय सरकार में बतौर दूसरी महिला कलेक्टर के तौर पर रानू साहू की पोस्टिंग हुई। रानू साहू ने सिर्फ पिछले कामो का लकीर को बड़ा करने का काम किया,लेकिन वे फंस गई। वो कहते है न ” कांड करने वाला निकल जाता है और दरवाजा खोलने वाला फंस जाता है”
मधुमक्खी का डंक है डीएमएफ
डिस्ट्रिक मिनिरल फंड और मधुमक्खी का छत्ता इन दोनों से मिलने वाला भाव एक समान हो गया है.. जिसे शहद मिला उसे मीठा लगता है और जिन्हें डंक पड़ा उनका मुंह सूज जाता है। डीएमएफ भी पिछले कुछ सालों से ऐसा ही हो गया है जिसको फंड मिला उन्हें मीठा लगा लेकिन ,जिन्हें डंक लगा उनके मुंह सूज रहे है। सरकार बदलने के लंबे अरसे के बाद डीएमएफ में इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस किया जा रहा है।
सूत्रों की माने तो कुछ ऐसे भाजपाई भी हाईमास्ट लाइट और सोलर लाइट का कर कांग्रेस कार्यकाल में माल बटोरे है जिनको अब पसीना आ रहा है। हालांकि सत्तारूढ़ पार्टी के ठेकेदार अपने आका ढूंढ कर सुरक्षित ठिकाने तलाश लिए है लेकिन डीएमएफ की सीडी ईडी के पास है। लिहाजा कब चल जाये कहा नही जा सकता।