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Big bang in small bundle: सिपाहियों को बड़े साहब का सवाल, अनुमति है,डैमेज कंट्रोल में जुटे निगम के द्रोणाचार्य..अधिकारी, सरकार के हैं आभारी,अफसर नेता और डोजियर

⏺️ जांबाज सिपाहियों को बड़े साहब का सवाल, अनुमति है..

शूटआउट लोखण्डवाला का ये संवाद वारंट लाया है गवाह हैं तेरे पास.. को अपग्रेड करते हुए नदी उस पार अनुविभाग के अधिकारी ने अपने ही सिपाहियों से तर्क करते हुए कहा कि किससे अनुमति लेकर गए थे स्क्रेब कारोबारियों के पास.. स्टेशन डायरी में दर्ज है ये बात…!

दरअसल नदी उस पार के एक प्लांट से स्क्रेब काटने का काम चल रहा है। स्क्रेब कारोबारी बिल कम और कबाड़ ज्यादा रखते हुए अवैध कबाड़ भी भेज रहे हैं। जिसकी जानकारी जब थाने के जांबाज सिपाहियों को मिली तो पूर्व की तरह निकल पड़े कबाड़ से जुगाड़ करने और स्क्रेब कारोबारी के ठिकाने पर पहुंचकर कबाड़  का बिल मांगा लेकिन कारोबारी तो पहुंचे हुए संत निकले।

स्क्रेब के बिल की बात उच्च अधिकारियों तक पहुंच गई। फिर क्या था बड़े साहब का फोन आया और उल्टा सिपाहियों को फटकार सुननी पड़ी। खबरीलाल की माने तो वीर सिपाहियों को शूट आउट लोकखण्ड वाला के संवाद अदायगी में कहा गया.. ” किससे अनुमति  लेकर गए हो तुम्हारे एसएचओ की जानकारी में बात है स्टेशन डायरी में जांच की बात दर्ज है ” आदि- आदि ! फिर क्या था बड़े साहब के फटकार के बाद वीर सिपाहियों का कबाड़ से जुगाड़ और कार्रवाई का सपना साकार नहीं हो सका। उल्टे उन्हें मुंह की खाते हुए वापस लौटना पड़ा।

स्क्रेब कारोबार के गलियारों में चल रही चर्चा पर गौर करें तो अब वे कहने लगने है पहली बार कोई अफसर विधि के अनुरूप काम करने वाला पदस्थ हुआ है क्योंकि अब तक होता रहा है कोरबा के वीर सिपाही गैर जिला बिना किसी अनुमति के जाकर जुगाड़ करते रहे हैं। ये पहली बार है जब नियम को फॉलो करने और कराने वाला अफसर जिला को मिला है। साहब के कड़े और बड़े निर्णय पर जनचर्चा है कि खाकी की धूमिल छवि पर साहब का एक्शन कारगर साबित हो सकता है।

⏺️ डैमेज कंट्रोल में जुटे निगम के द्रोणाचार्य…

हिटलर के प्रचार मंत्री जोसेफ़ गोयबल्स की एक बात बड़ी मशहूर है। गोयबल्स ने कहा था कि किसी झूठ को इतनी बार कहो कि वो सच बन जाए और सब उस पर यक़ीन करने लगें। ठीक इसी तरह निगम के द्रोणाचार्य भी झूठ को सच और घोटाले पर पर्दा डालने के लिए डैमेज कंट्रोल में जुटे हैं।

बात टेंडर मैनेज की चल रही परम्परा की है। खबरीलाल की माने तो पहले ठेकेदारों के लिफाफा रिसीव होने के बाद शाखा का बाबू ठेकेदारों के बीच मंडवाली कराकर अपना प्रोटेक्शन मनी वसूलता था जो अधिकारियों की जानकारी में रहता था। तब  ठेकेदार बाबू को बलवान और अधिकारी को पहलवान  मानते थे। अब जब ठेकेदार होशियार हुए तो हल्ला होना स्वभाविक है…!

बीते बुधवार को बुधवारी बाजार आदिवासी शक्ति पीठ में ठेकेदारों ने आपस में काम बांटते हुए तयशुदा रकम बांटकर लिफाफा रिओपन करते हुए रेट कोड कर दिया। चूंकि लिफाफा खुला तो फिर स्टेपलर मारकर फिर से बंद भी किया गया। जिसे निर्धारित नजराना के साथ पोस्टमेन को लिफाफा लेकर निगम जमा कराने भेजा गया। निगम के बाबू के हाथ जैसे ही निविदा पहुंचा वैसे ही पोस्टमेन को पकड़कर हंगामा शुरू हो गया।

हंगामा की गूंज जब निगम के द्रोणाचार्य कहने वाले महारथी तक पहुंची तो लोक लाज के भय से मामले में सेटल करने में भलाई समझी और हुआ भी वही सारे गलतियों को छुपा कर मामले को रफा दफा करने का प्रयास किया गया, लेकिन सोशल मीडिया की गूंज जब गूगल इंजन पर सर्च हुई तो माननीया ने सभी अधिकारियों को बुलाकर टेंडर को निरस्त करने का निर्देश दे दिया।

फिर क्या था अफसर जुट गए डैमेज कंट्रोल में। हालांकि जब तक अधिकारी टेण्डर घोटाले में अपनी आबरू बचा पाते तब तक तीर कमान से निकल चुका था औऱ शहर में बवाल भी मच गया था। सो निगम के द्रोणाचार्य की सच सामने आने के बाद जनमानस कहने लगे है निगम के खजाने को लूटकर आपने खूब माल कमाई है साहब अब कुर्सी छोड़ दीजिए इसी में भलाई है…!

⏺️ ये प्रभारी अधिकारी, सरकार के हैं आभारी

पॉवर सिटी कहे जाने कोरबा के अधिकारियों का करंट सप्लाई प्रदेश से हो रहा है। तभी तो जिले के महत्वपूर्ण पद प्रभारी अधिकारियों के भरोसे चल रहें हैं। सो प्रभारी अधिकारी सरकार का आभार प्रकट करते हुए एक टिकट में दो पिक्चर देख रहे हैं।

बात शासन की योजनाओं को जन- जन तक पहुंचाने वाले जिला पंचायत की करें तो यहां भी प्रभारी अधिकारी कभी अर्बन क्षेत्र में काम करती हैं तो कभी रूरल एरिया में.. ! नतीजा जिला और निगम के अफसर बेलगाम हो चुके हैं। क्योंकि  माननीया का कंसनस्ट्रेंट एक जगह पर नहीं हो पा रहा है.. तो स्वाभाविक है अधिकारी तो बिगड़ेंगे ही।

अब बात जिले के सबसे बड़े परिवहन विभाग की करें तो साहब का एक पैर पेंड्रा में और दूसरे में कोरबा का करंट दौड़ते रहता है। सो वे भी काम पर फोकस कम और दौड़ भाग में ज्यादा लगे रहते हैं। सो ओवरलोडिंग की वहज से सड़क दुर्घटनाओं में लगातार बढ़त का ग्राफ ऊपर की ओर चढ़ रहा है। यही हाल शिक्षा विभाग का है। बीईओ से प्रभारी डीईओ बने साहब का डिपार्टमेंट के कर्मचारियों में कंट्रोल नहीं है। रहे भी कैसे अगर नियम का डंडा कमर्चारियों पर हांकने लगेंगे तो उन्हीं की छुट्टी हो सकती है, क्योंकि विभाग के कर्मचारी भी सरकार तक पहुंच रखते हैं। सो वे भी डीईओ की कुर्सी का आनंद लेते हुये अपना विजन ब्राइट करने में जुटे हैं।

जब जिला सीईओ प्रभारी हो तो जनपद का क्या कहना। कोरबा जनपद में भी ट्रांसफर होने के बाद सीईओ की कुर्सी संभाल रही मैडम मनमानी करते हुए आवास और निर्माण कार्यों से मलाई निकालकर सरकार का आभार जता रही हैं। यही हाल मनरेगा के कार्यों में भी चल रहा है यहाँ तो निधि के लिए विधि को बदलते हुए पोड़ी और पाली जैसे बड़े जनपदों में तकनीकी सहायक को पीओ बनाया गया है। मतलब साफ है जो अधिकारी प्रभारी है वे सरकार के आभारी बनकर हर पल गुणगान करते हुए गीत गजल गा रहे हैं।

⏺️ अफसर नेता और डोजियर

महादेव ऑनलाइन सट्टेबाजी केस के मुख्य आरोपी सौरभ चंद्राकर को इंडिया में डिपोर्ट करने के लिए छत्तीसगढ़ पुलिस डोजियर लेकर दिल्ली में डटी हुई है..मगर इसे लेकर अफसर नेताओं की सांस फूल रही है। पुलिस के डोजियर में क्या है इसे लेकर महादेव के भक्तों को ठंड में पसीना छूट रहा है।

खबरीलाल की मानें तो महादेव के भक्त रायपुर वाया दुबई वाला कनेक्शन डायल कर मामले की जानकारी जुटा रहे हैं। असल में सीबीआई सौरभ चंद्राकर को रायपुर लाने में सफल हो गई तो कई हाई प्रोफाइल अफसर और नेता बेनकाब हो जाएंगे। हालांकि ऐसा होने में दो से चार महीने तक का समय लग सकता है।

इससे पहले भी महादेव सट्टा ऐप मामले में कुछ आईपीएस और आईएएस की ओर उंगली उठ चुकी है। इनमें से कुछ से पूछताछ भी हुई मगर मामला इससे आगे नहीं बढ़ा..पुलिस विभाग के आरक्षक स्तर के कुछ सिपाहियों की ही गिरफ्तार हो पाई। मगर अब मामला उल्टा पड़ सकता है।

महादेव ऑनलाइन सट्टेबाजी केस के मुख्य आरोपी सौरभ चंद्राकर के इंडिया में डिपोर्ट होने कई बड़े चेहरों की सफेदी उतर जाएगी। यही वजह है कि पुलिस के डोजियर में क्या है इसे लेकर सत्ता के गलियारों में जोरदार चर्चा चल पड़ी है।

⏺️ छोटी पुड़िया में बड़ा धमका

कहते हैं किस्मत ​कब किस पर मेहरबान हो जाए ये तो उपरवाला ही जानता है मगर छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में नई कहावत चल पड़ी है..महानदी भवन से जारी होने वाले ट्रांसफर लिस्ट पर नजर रखिए…लिस्ट में ठीकठाक स्थान मिला तो किस्मत वैसे ही मेहरबान हो जाएगी। असल में मंत्रालय से समन्वय में टुकड़े टुकड़े में जारी हो रहे तबादला आदेश छोटी पुड़िया में बड़ा धमका कर रहे हैं।

आईएएस और आईपीएस को छोड़ दें तो बाकी जिलास्तर के अफसरों की ट्रांसफर सूची टुकड़े टुकड़े में जारी हो रहे हैं। खबरीलाल की माने तो अफसर अपना डे प्लान रात 12 बजे के बाद ही अपडेट कर रहे हैं पता नहीं कब लिस्ट जारी हो जाए और अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ जाएं।

हालां​​कि इस मामले में राजस्व विभाग के तहसीलदार की किस्मत सरकार के फरमान से ज्यादा तेज निकली। बिना समन्वय के निकली तहसीलदारों की तबादला सूची पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। सालों से जमे तहसीलदार अपनी कुर्सी बचा ले गए। मगर बाकी विभाग के अ​फसर इस मामले में अनलक्की निकले।

बहरहाल दिवाली अभी दूर है मगर सरकार हर रोज छोटी पुड़िया में बड़ा धमका कर रही है..इसलिए ट्रांसफर लिस्ट का नाम सुनते ही अफसर चौंक जाते हैं। समन्वय के इस खेल में जो अफसर समन्वय बना लिए उनकी दिवाली मजे से गुजरेगी। मगर जो इसमें चूक गए उनकी तो भगवान जानें..।

छोटी पुड़िया में बड़ा धमका

कहते हैं किस्मत ​कब किस पर मेहरबान हो जाए ये तो उपरवाला ही जानता है मगर छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में नई कहावत चल पड़ी है..महानदी भवन से जारी होने वाले ट्रांसफर लिस्ट पर नजर रखिए…लिस्ट में ठीकठाक स्थान मिला तो किस्मत वैसे ही मेहरबान हो जाएगी। असल में मंत्रालय से समन्वय में टुकड़े टुकड़े में जारी हो रहे तबादला आदेश छोटी पुड़िया में बड़ा धमका कर रहे हैं।

आईएएस और आईपीएस को छोड़ दें तो बाकी जिलास्तर के अफसरों की ट्रांसफर सूची टुकड़े टुकड़े में जारी हो रहे हैं। खबरीलाल की माने तो अफसर अपना डे प्लान रात 12 बजे के बाद ही अपडेट कर रहे हैं पता नहीं कब लिस्ट जारी हो जाए और अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ जाएं।

हालां​​कि इस मामले में राजस्व विभाग के तहसीलदार की किस्मत सरकार के फरमान से ज्यादा तेज निकली। बिना समन्वय के निकली तहसीलदारों की तबादला सूची पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। सालों से जमे तहसीलदार अपनी कुर्सी बचा ले गए। मगर बाकी विभाग के अ​फसर इस मामले में अनलक्की निकले।

बहरहाल दिवाली अभी दूर है मगर सरकार हर रोज छोटी पुड़िया में बड़ा धमका कर रही है..इसलिए ट्रांसफर लिस्ट का नाम सुनते ही अफसर चौंक जाते हैं। समन्वय के इस खेल में जो अफसर समन्वय बन लिए उनकी दिवाली मजे से गुजर रही है मगर जो इसमें चूक गए उनकी तो भगवान जानें..।

✍️ अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

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