चार थाने की पुलिस ढूंढ रही इन वायलेंस पसंद लोगों को
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के डॉन का ये संवाद “डॉन का इन्तजार तो 11 मुल्कों की पुलिस कर रही है लेकिन, डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है” को शहर के वायलेंस पसंद लोग चरितार्थ कर रहे हैं। शहर के दोनों आरोपितों को चार थाने की पुलिस नगर-शहर ढूंढ रही है। लेकिन, वारदात के 10 दिन बाद भी पुलिस की डहर से वो दूर किधर फुर्र है..?
पहला प्रकरण शहर के सबसे चर्चित मारपीट गड़कलेवा का है। वारदात के मुख्य आरोपी 10 दिन बाद भी पुलिस की पकड़ से बाहर है। फरार चल रहे आरोपित की शहर में बारात निकालने दीपका, सिविल लाइन और बालको पुलिस अलग अलग ढंग से लगी है। कहा तो यह भी जा रहा कि पुलिस की नाक में दम करने वाले बदमाशों को पकड़ने मुखबिर तंत्र को एक्टिव किया गया है। बाउजूद इसके पुलिस इनके ठिकाने तक नहीं पहुंच पा रही है। दूसरा मामला कटघोरा कोर्ट में पेशी गए युवकों के आंख में मिर्ची पाउडर डालकर मारपीट करने का है। जिसमें तीन आरोपी को तो पुलिस पकड़ने में सफल रही। लेकिन,तीन अब भी फुर्र हैं। जिसे कटघोरा पुलिस के बहादुर पकड़ने जान की बाजी लगा रही है।
इन दोनों घटना के आरोपितों को पुलिस के ढूंढने के तरीके को गुन कर अपराध की दुनिया में दबदबा कायम करने वाले लोग कहने लगे है डॉन को ढूंढना मुश्किल ही नही नामुमकिन है। यह भी सच है कि “कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं.” और होते भी हैं, फिल्म ख़त्म होते होते कानून अपने लम्बे हाथों से अपराध को ख़त्म करके ‘हैपी एंडिंग’ कर देता है। अब कोरबा पुलिस भी वारदात कर बिल में घुसने वाले आरोपितों को गिरफ्तार कर हैपी एंडिंग कब करने वाली है, इस पर सबकी नजर है।
जंगल में.. मोर से ज्यादा हंस का शोर
वन विभाग के गलियारों में इन दिनों हंस प्रोजेक्ट की जमकर चर्चा हो रही है और विभागीय कर्मचारियों में शोर है कि पूरा जंगल हंस ने चर दिया। कहा तो यह भी जा रहा कि पैराशूट ठेकेदार ने विभाग को इस कदर लूटा की बिना हर्रा फिटकरी के रंग चोखा कर लिया।
डिपार्टमेंट से मिले एक दस्तावेज पर गौर करें तो मात्र सतरेंगा रेस्ट हाउस के रिवोनेशन में 26 पेटी का काम हंस प्रोजेक्ट को दिया गया। इसके अलावा डीएफओ के बंगले में साज सज्जा से लेकर हर वो काम हंस को दिया गया जिसमें काम कम और दाम ज्यादा वसूल हो सके। आरटीआई से मिले दस्तावेजों की माने तो लगभग एक खोखा का काम हंस प्रोजेक्ट के नाम है। जिसमें अधिकांश काम सिर्फ कागजों में है क्योंकि वे ठेकेदार तो साहब के अपने है।
वैसे कलयुग ही नहीं हर युग में जंगल के ज्यादातर कामों का कोई लेखा जोखा नहीं होता। खाता न बही जो अफसर लिख दे वही सही..ऐसा जंगलराज में होता आया है! सो वन विभाग के सप्लायर और ठेकेदार अफसरों से सांठगांठ कर जंगल मे हंस नचवा रहे हैं।
वैसे तो अफसर हवा को भांप लेते हैं और “दिखते दिए के साथ है लेकिन रहते हवा के साथ” हैं। अफसर जैसा देश वैसा भेष को स्वीकार्य करते हुए दो तीन ठेकेदार साथ लेकर आते हैं और उन्हें मलाई वाले काम देकर पिच में टिके रहने का हुनर सिखाते हुए बड़े शॉट लगवाते हैं… जिससे कमाई भी हो और मलाई भी निकल जाए। तभी तो वन विभाग के गलियारों में दाना चुगने वाले मोर से ज्यादा हंस की कालिमा का शोर है।
लकड़ी जल कोयला भई, कोयला जल भया राख।
मैं पापिन ऐसी जली, कोयल भई न राख॥
कबीर का ये दोहा आज के छत्तीसगढ़ में बिल्कुल फिट बैठ रहा है। नहीं समझ में आया तो हम आपको समझाने की कोशिश करते हैं। समय काल के साथ हम जैसे ज्ञानी लोग संतों की वाणी का अपने अंदाज में अर्थ खोज ही लेते हैं। अब इस दोहे को ऐसे समझे जो हमारी समझ में आया वो आपको बता रहे हैं।
इस दोहा के पहली पंक्ति ”लकड़ी जल कोयला भई, कोयला जल भया राख। ” में कबीर दास छत्तीसगढ़ में हुए कोयला परिवहन घोटाला की बात कर रहे हैं। ऊपर से नीचे तक गिरोह बनाकर भ्रष्टाचार की लकड़ी से जमीन के नीचे से निकलने वाले कोयले को जलाया गया…। जब भ्रष्ट्राचार की आग का धूंआ फैलने लगा तब तक फाइलों में दबा भ्रष्ट्राचार का कोयला जलकर राख हो गया। अब ईडी, ईओडब्ल्यू और एसीबी और सीबीआई मिल कर इस राख को झाड़ झाड़कर उसमें से कोयला परिवहन घोटाला में शामिल लोगों को ढ़ूंढ रही है…जिसका जिक्र कबीर ने अपने दोहे में किया है।
कबीर के दोहे की दूसरी पंक्ति” मैं पापिन ऐसी जली, कोयल भई न राख॥..” छत्तीसगढ़ के शराब घोटाला मामले को समर्पित है। इस पंक्ति में कबीरदास शराब घोटाला में एक आरोपी की महिमा के बारे में बताते हैं…जिनके फार्म हाउस से शराब की बोतलों में लगाए जाने वाले आधे जले हुए होलोग्राम मिले हैं। ये होलोग्राम नकली शराब में इस कदर डूबा हुआ था कि वो राख नहीं हो पाया..और एसीबी और ईओडब्ल्यू के हाथ लग गया।