0 पौधों में बढ़ रही बिना कीट, परागण की प्रकृति
The Duniyadari.Com
Korba : फूलों का आकार सामान्य से 10% छोटा। पराग रस की मात्रा में 20% की कमी। मित्र कीट की आबादी जिस तेजी से घट रही है, उसके बाद परागीकरण की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। ऐसे में पौधे बदलती स्थितियों के अनुकूल खुद को ढालने के प्रयासों में बदलाव ला रहे हैं।
फूलों के खिलने में भंवरे की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है। लेकिन भंवरे सहित ऐसे मित्र कीट तेजी से खत्म हो रहे हैं, जो फूलों के परागीकरण की प्रक्रिया में योगदान देते हैं। यह प्रक्रिया, फूल वाले पौधों में प्रजनन और बीज बनाने में मदद करती है। नया बदलाव यह देखा जा रहा है कि कई पौधों में फूलों में बगैर कीट, परागण की प्रक्रिया होने लगी है।
सेल्फ फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया
मित्र कीट की संख्या में आ रही गिरावट के बाद परागीकरण की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। यह कीट इसलिए तेजी से घट रहे हैं क्योंकि उनका प्राकृतिक रहवास खत्म हो रहा है। इसके अलावा कीटनाशकों का बेतहाशा छिड़काव भी जनसंख्या को कम कर रहा है। यही वजह है कि पौधे बदलती परिस्थितियों के अनुकूल खुद को ढालते हुए सेल्फ फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया अपना रहे हैं।
संकट भंवरों पर
कुशल परागणक माने जाते हैं भंवरे। जंगली फूलों के घास के मैदान प्राकृतिक रहवास में यह रहते हैं। अब ऐसे मैदान खत्म हो चुके हैं, तो नए आवास के लिए उचित पर्यावरणीय माहौल भी नहीं है। इसके अलावा मधुमक्खी और व्यावसायिक रूप से पाले जाने वाले भंवरों की वजह से भोजन की कमी भी घटती आबादी की मुख्य वजहों में से एक मानी जा रही है लेकिन पर्यावरण की हानि, वैज्ञानिकों में चिंता की बड़ी वजह बनी हुई है।
हुआ यह खुलासा
1992 से 2001 के बीच की अवधि में संग्रहित बीज के तुलनात्मक अध्ययन एवं अनुसंधान में वैज्ञानिकों को यह जानकारी मिली कि अनुवांशिकीय विश्लेषण में बदलाव आ रहा है। इसकी वजह से फूलों का आकार सामान्य से 10% छोटा है और पराग रस की मात्रा में 20% की कमी आ रही है। इसकी वजह से भंवरे उनकी और कम आकर्षित हो रहे हैं। ऐसे में पौधे सेल्फ फर्टिलाइजेशन का सहारा ले रहे हैं। यह प्रक्रिया 27 फीसदी बढ़ चुकी है।
जलवायु परिवर्तन के साथ सिकुड़ रहा भौंरों का आवास
भौंरों की घटती संख्या पर्यावरण के लिए खतरनाक है क्योंकि फूल वाले पौधों के प्रजनन के लिए भौंरों द्वारा परागण क्रिया आवश्यक है। भौंरों की संख्या में गिरावट के पीछे जलवायु परिवर्तन ही एकमात्र कारण नहीं है। कीटनाशकों का अंधाधुंध उपयोग, शहरीकरण से प्राकृतिक आवास का नष्ट होना तथा भूमि का कृषि में रूपांतरण ऐसे कारण है जो भौंरों के जीवन को संकट में डाल रहे हैं।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर