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Salute to the tricolor heroes: ये थानेदारी कहीं पड़ न जाए भारी,बंदूक के साज पर रेत घाट..थानेदारों पर पहरेदारी,कमल निशान और नेता परेशान…

ये थानेदारी कहीं पड़ न जाए भारी..!

शनिवार को हुए थानेदारों के ट्रांसफ़र के बाद पुलिस महकमे में एक कैसेट बजना शुरू हो गया है । कैसेट सुनकर एल्युमिनियम नगरी के नए थानेदारों को करीब से समझने वाले कहने लगे हैं ये थानेदारी कहीं साहब को न पड़ जाए भारी..!

असल में जिले की शान कहे जाने वाले हलके के थाने में थानेदारी करना भारी पड़ता है। धरना प्रदर्शन के अलावा सत्ता और विपक्ष के नेताओं में तालमेल बैठाकर काम करना बिल्ली के गली घंटी  बांधने जैसा है और नए थानेदार साहब तो ठहरे “खिलाड़ी” सो थानेदार को थानेदारी भारी पड़ने वाली है। दरअसल कप्तान साहब बोलते कम हैं लेकिन, कार्रवाई के डंडे की गूंज सन्नाटे को चीर देती है। मतलब साफ है ” कानून व्यवस्था से नजर हटी तो दुर्घटना घटी और फिर लाइन में नजर आती है फटफटी…!”

पुलिस के अनुभवी पंडितों का ऐसा कहना भी सही है क्योंकि साहेब का जो स्वभाव है उससे स्पष्ट है कि किसी का भाव नहीं बढ़ने वाला है। लिहाजा बेसिक पुलिसिंग पर न चाहते हुए भी टीआई को मन लगाना पड़ रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि औद्योगिक नगरी में थानेदारी का सपना संजोने वाले थानेदार फ़िल्म गूंज उठी सहनाई का गीत  “दिल का खिलौना हाय टूट गया कोई लुटेरा आके लूट गया ” को गुनगुना कर दिल बहला रहे हैं।

बंदूक के साज पर रेत घाट में डिप्टी सीएम के धौंस की बात

सरकार बदलने के बाद अवैध कारोबार को ऑपरेट करने कुछ वाले नेता उत्साह में बंदूक निकाल ले रहे हैं। बात शहर से लगे एक रेत घाट की है। पंचायत को मिले रेत घाट का संचालन कर रेत से तेल निकालने नेताजी सचिव और सरपंच पर घाट हैंडलिंग के पॉवर ऑफ अटॉर्नी लेने दबाव बनाने लगे। जब पंचायत प्रतिनिधियों ने स्टाम्प में दस्तखत करने से इंकार किया तो लाइसेंसी रिवाल्वर निकालकर धमकाने का प्रयास किया गया।

इसके बाद भी नेता जी के घाट हड़पने की नीति धरी की धरी रह गई। कहा तो यह भी जा रहा है रेत घाट से रेत निकालने जांजगीर का भी एक रेत माफिया सक्रिय है, जो रेत को डंप कर रॉयल्टी संग्रहण करने उत्साहित है। वैसे तो ये बंदूक वाले नेता जी वही है जो पूर्व गृह मंत्री के निशाने पर रहते हैं। हालांकि 15 साल के बीजीपी कार्यकाल में दोनों हाथ से सरकार और पब्लिक को खूब लुटे और पूर्ववर्ती सरकार में उन्हीं के मार्गदर्शक ने आरोप लगाया तो कोमा में चले गए।

अब जब सरकार बनी है तो फिर से डिप्टी सीएम का धौंस दिखाते हुए भोले भाले लोगों को डराकर रेत से तेल और महल बनाने का सपना संजोने लगे हैं। ये बात अलग है उनकी धमकी और नदी को लूटने का प्लान प्रशासनिक अफसरों तक पहुंच चुकी है। ऐसे में उनका ख्वाब पूरा होने की गुंजाइश कम दिख रही है। हालांकि उनके ये लूट की नित की खबर से पार्टी के लोग कह रहे हैं बंधुओं का नेचर और सिग्नेचर चेंज नहीं हो सकता..!

वीडियो कॉलिंग से थानेदारों पर पहरेदारी…

सूबे के एक जिले में कैप्टन की पहरेदारी सुर्खियां बटोर रही है। दरअसल कप्तान का फोकस स्मार्ट पुलिसिंग पर है। तभी तो अपने थानेदारों से वीडियो कॉलिंग कर कुशल क्षेम पूछते हैं। जिससे यह क्लियर हो कि जनाब थाने में हैं या और कहीं…! उनके नई टेक्निक को देखकर थानेदार कहने लगे हैं काम करने का तरीका बदलने में ही भलाई है भाई..।

वैसे ठीक भी है क्योंकि पूर्ववर्ती सरकार में थानेदार पुलिसिंग कम और कमाई पर फोकस ज्यादा करते रहे। लिहाजा कप्तान साहब अपने अलग अंदाज में थानेदारों की पहरेदारी कर बेसिक पुलिसिंग को धार दे रहे हैं। साहब की पहरेदारी से परेशान टीआई अब कुर्सी में फेविकोल लगाकर बैठते हुए कहने लगे है  ” थोड़ा डर के रह बेटा ,वरना साहब आ जायेगा..!”

वैसे भी ये जिला बड़ा सेंसेटिव है। किसान पुत्र नेता ही सूबे में सबसे पॉवरफूल मंत्री हैं। इस लिहाज से जिले में लॉ एंड ऑर्डर को चुस्त दुरुस्त रखना ही प्राथमिकता है। कहा तो यह भी जा रहा है  इस जिले से हाल में हुए ट्रांसफर से एक काम कम सेटिंग ज्यादा वाले टीआई साब की छुट्टी हुई है। उनके ट्रांसफर के बाद थानेदारों में चल रहे गुटबाजी कम होने और पुलिसिंग को नए अवतार में दिखने की विभाग में चर्चा है।

कमल निशान..नेता परेशान

दिल्ली के भारत मंडपम में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में दो दिन तक लोकसभा चुनाव में 370 प्लस सीटों पर जीत दिलाने का फार्मूला तय हुआ। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और चुनाव रणनीतिकार अमित शाह ने संगठन को जमकर रिचार्ज किया। लेकिन, इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीत का जो मंत्र दिया…..कमल निशान ही उम्मीदवार होगा…से उन सांसदों और नेताओं की परेशानी बढ़ गई है जो इस बार मोदी के लहर के भरोसे चुनाव वैतरणी आसानी पार करने का मंसूबा पाले बैठे थे।

मोदी का ये कहना कि कमल निशान ही उम्मीदवार होगा की चर्चा पार्टी के अंदरखानों में चल रही है। यानि विधानसभा का फार्मूला लोकसभा में भी लागू किया जाएगा। किसे कहां से उम्मीदवार बनाना है ये पार्टी से दिल्ली स्तर पर तय होगा और संगठन पर उसे जीताने की जिम्मेदारी होगी। लिहाजा कई सांसद पूर्व सांसद हो सकते हैं।

छत्तीसगढ़ की बात करें तो जो सांसद लंबी पारी खेल चुके हैं उन्हें बदल दिया जाएगा। पार्टी स्तर पर इसके लिए सर्वे का काम पूरा हो चुका है। सूबे की कुल 11 सीटों में से कोरबा और बस्तर अभी कांग्रेस के पास है, बाकी बची 9 सीट बीजेपी के पास है। इन 9 सीटों पर बदलाव की गुंजाइश तो है ​ही कोरबा और बस्तर में भी कांग्रेस का किला ढहाने के लिए नए चेहरों को मैदान में उतारने की तैयारी है।

लिहाजा जिन्हें कमल निशान मिलेगा उसका बेड़ापार हो जाएगा लेकिन जो पूर्व सांसद होने वाले हैं उनकी परेशानी बढ़ना स्वाभाविक है। उम्मीद है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के प्रभाव वाली चार सीटों पर इसी माह के अंत तक उम्मीदवारों का ऐलान किया जा सकता है। बाकी का काम संगठन को करना होगा।

तिरंगा वीरों को सलाम

छत्तीसगढ़ के घोर नक्सल प्रभावित गांव पूवर्ती में कल पहली बार तिरंगा फहरता दिखा। ये तस्वीर उन गांव की है जो नक्सली कंमाडर हिड़मा का गांव है और यह माओवादियों का हेडक्वार्टर भी है, यहीं से जनताना सरकार संचालित होती है।

पुलिस की वर्दी में जवान जब तिरंगा लेकर पूवर्ती पहुंचे तो इसका असर छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश में देखा गया। सोशल मीडिया में इन तिरंगा वीरों को सलाम किया जा रहा है। बस्तर की ये बदलती तस्वीर भी बदलते बस्तर की नई इबारत लिख रही है।

सुरक्षा बलों के जवानों के हौसले का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि टेकलगुड़ा के बाद 15 सौ जवानों ने दो दिनों में पूवर्ती में नया कैंप खोल दिया।
सीआरपीएफ, कोबरा व डीआरजी के करीब 15 सौ जवानों के साथ एसपी, सीआरपीएफ डीआइजी, एएपी समेत डीएसपी भी पहुंचे।

जिस गांव से जनताना सरकार चलती हो उस गांव में पहली बार लोकतांत्रिक सरकार के प्रतीक तिरंगा को देखकर गांववाले भी हैरान हो गए। ये उनके लिए किसी सपने से कम नहीं था। खुद एसपी किरण चव्हाण ने कैंप के सामने तिरंगा लहराया, पूवर्ती गांव मे पहली बार तिरंगा लहराया। नक्सली कमांडर हिड़मा के घर पहुंचकर उनकी मां से भी मुलाकात की। बस्तर की तस्वीर बदलने वाले ऐसे तिरंगा वीरों को सलाम…।

     ✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

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