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The farmers’ thoughts were expressed in silence: टीआई ट्रांसफर लिस्ट तैयार,गुडबुक…रेडबुक..माई नेम इज लखन,बिरनपुर ने बिगाड़ा खेल…

टीआई ट्रांसफर लिस्ट तैयार

 

प्रदेश के निजाम बदलते ही कप्तान को थानेदारों के ट्रांसफर का पहला मौका मिलने वाला है। सो साहब ने गुड वर्करों की लिस्ट तैयार कर लिया है। उनके गुड बुक में आने वाले थानेदारों को हुनर दिखाने का अवसर मिलने वाला है। कहा तो यह भी जा रहा है कि लंबे समय बाद बेस्ट वर्करों की टीम फील्ड में काम करेगी। जो खाकी की इमेज को सुधारने का काम करेंगे और पब्लिक को सपोर्ट करेंगे। वैसे चर्चा तो इस बात की भी सायबर का प्रभार तेज तर्रार आईपीएस के कंधे पर होगी।

महकमे में चल रही चर्चा की माने तो 5 दिसंबर के आसपास तबादला सूची जारी की संभावना है। खबरीलाल की माने तो नदी उस पार यानी कोयलांचल के एक थानेदार की छुट्टी हो सकती है। उनके स्थान पर रक्षित केंद्र से थानेदारी का राह देख रहे टीआई को पदस्थ करने की बात महकमे में चल रही है। रही बात देश की शान कहे जाने एल्युमिनियम प्लांट के थाने की,तो वहाँ भी थ्री स्टार के तैनाती की चर्चा है। अब बात अगर सरहदी थानों की जाए तो उसमें भी फेरबदल की संभावना है। जो भी पर ट्रांसफर की खबर के बाद खाकी के खिलाड़ियों में खलबली है।

 

गुडबुक…रेडबुक

छत्तीसगढ़ में सरकार बदले ही अफसरों की निष्ठा भी बदलने लगी है। कांग्रेस सरकार में सीएम की गुडबुक में रहने वाले अफसर अब सरकार बदलते ही अगली सरकार के रेडबुक में आ गए हैं। इसकी शुरुआत आज से हो गई। डीएमएफ फंड से स्वामी आत्मानंद स्कूल का मॉडल चलाने वाले कांग्रेस सरकार में संविदा में नियुक्त प्रमुख सचिव पद पर डॉ आलोक शुक्ला ने सरकार बदलते ही अपना सरकारी बंगला खाली कर दिया है। अब वे इस्तीफा देने की तैयारी कर रहे हैं।

बीजेपी नेताओं के रेडर में रह गई अफसरों को पसीना आने लगा है। चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने कुछ कलेक्टर, आईपीएस और मैदानी अफसरों को हटाकर मुख्यालय में लाकर बैठा दिया था। इन अफसरों को उम्मीद थी कि कांग्रेस की सरकार बनने पर उन्हें फिर मलाई खाने का मौका मिलेगा। लेकिन जनता ने सरकार ही बदल दिया तो अब अफसर भी अपना आका बदलने लगे हैं।

कांग्रेस के करीबी जिन अफसरों को उम्मीद थी कि सरकार बनने पर उन्हें मैदान में खेलने का पूरा मौका मिलेगा वो नए आका की तलाश कर रहे हैं। कुछ तो बधाई देने के लिए मार्निंग वॉक बहाने बीजेपी नेताओं के बंगलों का चक्कर भी लगा आए हैं। अफसरशाही में इन अधिकारियों के मार्निंग वॉक की जमकर चर्चा हो रही है।

 

माई नेम इज लखन..

 

अनिल कपूर के फ़िल्म राम लखन के सुपरहिट गाने की धुन ये जी ओ जी लो जी सुनो जी माई नेम इज लखन…! की गूंज अब पांच बरस गूंजने वाली है। पार्टी कार्यकर्ताओं ने तो जीत के आगाज के बाद निकाली गई विजय रैली में माई नेम इज लखन पर शहर भर में थिरकते फिर रहे हैं। राजनीतिज्ञ विश्लेषकों की माने तो वास्तव में बीजेपी के विधानसभा प्रत्याशी ने 15 साल से विधायकी पर काबिज दबंग मंत्री को एक हराकर “माई नेम इज लखन” के गीत को हिट कर दिया।

कोरबा की राजनीति में नजर डाले तो पहले कटघोरा और अब कोराबा शहर में पूर्व महापौर लखनलाल देवांगन की बाजीगिरी से कांग्रेस की सारी तैयारी धरी रह गई। पहले जब कोरबा जैसी हाईप्रोफाइल सीट से जयसिंह अग्रवाल जैसे कद्दावर मंत्री के आगे लखनलाल देवांगन का उतारा गया तब बीजेपी के ही कई नेता सवाल उठाते रहे। मगर लखनलाल देवांगन की बाजीगिरी ने सभी को चुप कर दिया। अब आगे अगर बीजेपी एकजुट रही तो लोकसभा चुनाव में भी परिणाम चौंकाने वाले होंगे।

 

बिरनपुर ने बिगाड़ा खेल

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के नतीजों में छत्तीसगढ़ के बिरनपुर में हुई जातीय हिंसा का असर साफ दिख रहा है। कांग्रेस को बेमेतरा जिला के अलावा दुर्ग जिले की सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस सरकार के प्रवक्ता और 6 बार के विधायक रहे रवींद्र चौबे बीजेपी के साधारण कार्यकर्ता ईश्वर साहू से मात खा गए। कद्दावर मंत्री मोहम्मद अकबर की लुटिया झांडा विवाद ने डूबो दी। उन्हें भी बड़ी मार्जिन से हारना पड़ा। रही सही कसर बस्तर में हुए आदिवासी समाज के धर्मातंरण ने पूरी कर दी।

इस चुनाव में कांग्रेस के छद्म राम राज्य वाले मॉडल को जनता ने लगभग नकार दिया। चुनाव से पहले कांग्रेस के कई मंत्री अपने सत्ता बचाने के लिए राम नाम का सहारा लेने की कोशिश करते रहे पर जनता उनकी असलियत जान चुकी थी, और आज चुनाव परिणाम सामने आए तो उसमें जनता ये बता दिया कि जनाव ये पब्लिक है वो सब जानती है।

 

किसानों की खामोशी में थी मन की बात

 

छत्तीसगढ़ में एक नवंबर से धान खरीदी शुरु हो चुकी है। मगर पूरे एक महीने किसान खमोशी से अगली सरकार बनने का इंतजार करते रहे। कई केंद्रों में तो बोहनी तक नहीं हुई। छत्तीसगढ़ मॉडल और खुद को किसान हितैषी बताने वाली कांग्रेस सरकार किसानों के मन की बात को समझने में यहीं चूक कर गई, और मोदी की गारंटी ने खेला कर दिया।

5 साल पहले किसानों को धान का बोनस नहीं देकर बीजेपी ने जो गलती की थी वो इस बार उससे सबक लेते हुए सुधार लिया और दोबारा सत्ता में लौट आई। हालांकि कांग्रेस ने खैरात बांटने में कोई कमी नहीं की, कर्ज माफी तक का ऐलान कर दिया मगर किसानों ने बता दिया कि छत्तीसगढ़ी किसान सहज सरल तो हैं मगर उनका स्वाभिमान खैरात पाने वाला नहीं है। उन्हें कर्ज माफी नहीं अपनी मेहनत की वाजिब कीमत चाहिए। और बीजेपी इसे समझ कर कांग्रेस का मात दे गई।

    ✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

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