कटाक्ष

Feedback and uproar: कौन बनेगा दीपका टीआई,हां हूँ मैं पैसा वाला..कण-कण में लिखा है खाने वालों,हाथों में तख्तियां…जिस पर लिखा था…

🔶कौन बनेगा दीपका टीआई..

कौन बनेगा करोड़पति सीजन 15 के साथ जिले में कौन बनेगा दीपका थानेदार की चर्चा खाकी वालों में शुरू हो गई है। वैसे खनिज संपदा से परिपूर्ण दीपका थाना अपने आप मे रुतबा और राजस्व में सबसे बड़ा है। लिहाजा बड़े थाने में थानेदारी का शौक हर वो टीआई चाहता है जिनकी ऊर्जाधानी में पोस्टिंग होती है। यही वजह है दीपका टीआई की कुर्सी खाली होते ही दीपका जाने वाले जांबाजों की लाइन लंबी होती जा रही है।

कुछ टीआई हाई जैक लगाकर बड़े साहब को मना रहे हैं और कुछ लाइन में बैठकर भी डिपार्टमेंट के लोगों को हमको राणा जी माफ करना कहते हुए मना रहे हैं। सूत्र बताते हैं जब से तेज यादव कुर्सी से उतरे हैं तब से कई तीन स्टार वाले खुफिया तंत्र को बढ़ा रहे हैं जिससे एसपी कार्यालय में होने वाली हर चहल- कदमी का लाइव टेलीकास्ट सुन सके।

कहा तो यह भी जा रहा है अपने सर्कल के टीआई को बैठाने एक कुछ थानेदारों की गोपनीय मीटिंग भी हुई थी। हालांकि उनके मीटिंग की खबर लीक होने के बाद उनके अपने कुर्सी भी खतरे में है। लिहाजा सबकी निगाहें करोड़पति बनने वालों पर टिकी है और कोरबा के लोगों की दीपका थानेदार पर..!

वैसे इस बात की चर्चा भी जोरों पर है कि आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर दीपका थाना के लिए तेज तर्रार और सख्त अफसर की तलाश की जा रही है जो चुनाव के साथ साथ खदान में होने वाली गतिविधियों पर नजर रख सके।

🔶हां हूँ मैं पैसा वाला…

काला बाजार का गीत ” ठन ठन की सुनो झंकार के पैसा बोलता है…” लेकिन चुनाव में ये पैसा ही वोटरों को बांधने का काम करती है तो नेता जी का ये बयान ” हां हूं मैं पैसा वाला ” का क्रेडिट तो बनता है। दरअसल एक टीवी डिबेट में जब नेताजी ने एक प्रश्न के प्रतिउत्तर में कहा कि मैं पहले भी पैसे वाला था और अभी हूँ और आने वाले समय मे भी रहूंगा। उनके इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में खलबली मची गई और राजनीति के चाणक्यों ने इस बात को तूल दे दिया।

कुछ लोग वहीं पर मुकेश के मीठे गीत “इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल जग में रह जाएंगे प्यारे…” से सीख की बात कहने लगे। वहीं मंजे नेताओं का कहना है कि पैसे की महत्ता दीपक के उस लौ की तरह है जिसके जगमगाने से क्या अपने और क्या पराए सभी पतंगों की भांति दीपक के आगे मंडराने लगते हैं। बुजुर्ग कहते रहे है कि, अपनी कमाई और रणनीति किसी को नहीं बतानी चाहिए। लेकिन, आज के दौर में अमीरी का रौब और गरीबों पर खौफ क्रेज बन गया है। अब है तो छिपाने में क्या बचा, जो है सबके सामने है..।

नए क्रेज के दौर में नेता जी कह दिए तो कह दिए “हां हूँ मैं पैसे वाला” हालाकि उनके मंच से भरे हुंकार के बाद विपक्षी खेमा सहमा दिख रहा है। अब विरोधी भी ये सवाल उठा रहे हैं ​कि क्या सही में मतदाताओं पर पैसा भारी पड़ जायेगा…? खैर चुनाव के परिणाम तो भविष्य के गर्भ में है पर नेताजी के एक बयान से सियासी पारा जरूर गरमा गया है।

आम लोगों में “पैसा”  अब केवल एक वाक्य नहीं रह गया है,बल्कि कोरबा के राजनैतिक गलियारों में बिछी चुनावी बिसात में एक चर्चा का विषय बन गया है।कुछ लोग इसे नेताजी का गुरुर कह रहे हैं वहीं कुछ लोगों को एहसास हो गया है नेता जी चुनाव में खर्च करने का माद्दा रखते हैं।

🔶रेत के कण-कण में लिखा है खाने वालों का नाम…

शहर के अवैध रेत खदान से निकलने वाले रेत के कण-कण में खाने वालों का नाम लिखा हुआ है। सूत्र बताते हैं कि हसदेव नदी से निकलने वाली रेत में वार्ड पार्षद का एक हिस्सा फिक्स है। इसके अलावा भाजपा के कुछ छुटभैय्ये नेता भी रौब जमाते और कार्रवाई का भय दिखाते हुए हिस्सा वसूली कर लेते हैं। अब बात स्व सहायता की करें तो वे भी अपने हिस्से की डिमांड कर मस्त है। ये तो हुई नदी किनारे रहने वालों की बात।

अब बात पुलिस की करें तो सड़क में ट्रैक्टर दौड़ाने का टैक्स तो बनता ही है। सो थाना चौकी के साथ ट्रैफिक टैक्स भी देना ही पड़ेगा। कहा तो यह भी जा रहा है कि राजस्व विभाग की भी अवैध रेत में हिस्सेदारी है। मतलब साफ है रेत के हर कण में खाने वाले का नाम लिखा है और बदनाम होने वालों में सिर्फ खनिज विभाग का। ये अलग बात कि, रेत निकालकर जीवन यापन करने वाले रेत कारोबारी रेत का सभी खर्च कस्टमर से वसूलते हैं। ताकि सभी लेवी वसूलने वालों में बंटवारा किया जा सके।

इन सबके बीच रेत निकालने वालों पर रेत से तेल निकालने की कहावत सटीक बैठती है। वर्तमान समय में भी नदी से रेत निकालना कोई सरल काम नहीं है ,यह तब तो और भी कठिन हो जाता है जब मानसून के दौरान ग्रीन ट्रिब्यूनल का प्रतिबंध लगा होता है। पर कहते हैं न कि चोर हर ताले की चाबी बना लेते हैं।
यही दशा रेत चोरी में भी देखी जा रही है। जाहिर सी बात है, प्रतिबंध लगने के कारण रेत का रेट बढ़ गया है। कहावत यह भी है कि कद्दू कटेगा तो सब में बंटेगा। बिना बंटवारा दिए नदी से रेत निकालना टेढ़ी खीर है।

🔶फीडबैक और हंगामा…

एक डिटरजेंट पाउडर बेचने वाली कंपनी का विज्ञापन छोटे पर्दे में आया था दाग अच्छे हैं जो टीवी स्क्रीन पर काफी लोकप्रिय हुआ। लेकिन, छत्तीसगढ़ की राजनीतिक स्क्रीन में राजीव भवन में टिकट के दावेदारों के बीच जो हंगामा मचा उसकी कल दिनभर चर्चा रही।

हालांकि पार्टी की ओर से इस हंगामे को कार्यकर्ताओं से मिला फीडबैक बताया गया। मगर, यही फीडबैक अगर ​फील्ड में कांग्रेस को सत्ता के गलियारे में कम बैक करने में रोड़ा गया तो ….!

रविवार को देर रात तक राजीव भवन में कांग्रेस की राजनीतिक स्क्रीन में फीडबैक एपिसोड चलता रहा लेकिन, दावेदारों के नाम को लेकर कोई फैसला नहीं हो सका। आज फिर इसी फीडबैक पर चर्चा होनी है।

हंगामा लंबा चलता से इससे पहले पार्टी की प्रदेश प्रभारी सैलजा को कहना पड़ा कि, बैठक में अच्छा फीडबैक मिला है। सभी मिलकर चुनाव लड़ेंगे। साथ में ये भी कह दिया कि अगर कोई पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होता है तो उस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

यानि टिकट के दावेदारों ओर कार्यकर्ताओं का फीडबैक ज्यादा समय तक नहीं चलने वाला। चुनाव में जिला व संभाग स्तर पर सभी पदाधिकारियों को अपनी जिम्मेदारियां निभानी पड़ेगी और जो नहीं मानेंगे उसे बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।

🔶बेटियों के ​​हाथों में तख्तियां…जिस पर लिखा था…

राजधानी रायपुर से लगे मंदिर हसौद क्षेत्र में राखी के दिन दो सगी बहनों से दुष्कर्म की घटना ने सभी को झकझोर दिया है। आधी आबादी का ये गुस्सा सड़क पर दिखा। छत्तीसगढ़ी महिला समाज की सैकड़ों महिलाओं की आक्रोश रैली सुभाष स्टेडियम से होते हुए कलेक्ट्रेट चौक में छत्तीसगढ़ महतारी प्रतिमा तक पहुंची। रैली में हाथों पर तख्तियां लिए महिलाएं दुष्कर्मियों को फांसी देने की मांग कर रही थी।

हालांकि पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया और फास्टट्रेक कोर्ट में मामले की सुनवाई का भरोसा भी दिलाया। मगर, इन बेटियों को हिम्मत और सुरक्षा का एहसास हो सके इसकी जिम्मेदारी भी पुलिस को ही निभानी पड़ेगी। चौक चौराहों पर आवारागर्दों का जमावड़ा, अड्डेबाजी, नशे का बाजार और स्टंटबाज बाइकर्स से रायपुर के लोगों को रोज सामना करना पड़ता है।

ऐसे में लोगों का पुलिस के भरोसे पर एतबार करना मुश्किल होता जा रहा है। जरूरत इस बात की है कि जनता के इस भरोसे पर खरा उतरने के लिए आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद क्या पुलिस की जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है। पुलिस को चाहिए कि वो कोई ऐसी व्यवस्था लागू करे ताकि अपनी सुरक्षा के लिए हाथों पर तख्तियां लिए बेटियों को सड़क पर दोबारा न उतरना पड़े।

​​    ✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

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