कटाक्ष

Poster war: अफसर और नर, कैमिकल+सिविल..तो क्या हुआ पैसे वाले हैं, राम को गुस्सा क्यों 

अफसर और नर नारायण

साल 2022 गुजर गया 23 की शुरुआत हो गई। यानि 365 दिन मजे में गुजर गए….ऐसा इसलिए हो पाया कि छत्तीसगढ़ अपना खर्चा चलाने में आत्मनिर्भर हो गया है, इसका पूरा श्रेय सरकार की शराब दुकानों में लाइन लगाकर खड़े नर नारायण को ही है। यानि ये नर नारायण तुम शराब पीते रहो…..मस्त रहो…आबकारी अफसरों को भी पता है कि इन नर नारायण की सेवा में ही मेवा है। जब तक नर नारायण की दया उन पर है सरकार का खर्चा भी चलता रहेगा और उनकी भी बन पड़ेगी।

लेकिन, कोरबा में भठ्ठी के आसपास दिखने वाले नर नारायण पुलिस की सख्ती की वजह से मयखाने की बजाए कोर्ट कचहरी के आसपास नजर आने लगे थे। ये बात आबकारी अफसरों को परेशान करने लगी थी। दरअसल कोरबा पुलिस के  अभियान ने सरकारी शराब दुकानों के आसपास पहरा सख्त कर दिया था। रोज-रोज पुलिस की पेनाल्टी और कोर्ट के लगातार चक्करों से तंग आकर मदिरा प्रेमियों ने शराब खरीदना कम कर दिया था। जब सरकार को अपना राजस्व घटता दिखा तो नर नारायण की माया के आगे पुलिस को अपना पहरा हटाना पड़ा।

पुलिस का पहरा हटते ही ये नर नारायण अब सरकार के ख्वैयया बन गए हैं। वैसे पहले भी कोरोना काल में शराब की बिक्री बंद हुई तो कई सरकारों ने सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन का हवाला देते हुए अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए शराब की बिक्री की वकालत की थी। यानि ये नर नारायण तुम शराब पीते रहो…..मस्त रहो…।

 

कैमिकल+सिविल का काम.. और ये हो गए हैं पहलवान…

अजब निगम के गजब कारनामों की गूंज सभी दिशाओं में हो रही है। हो भी क्यों न आखिर मामला भी गजब है। दरअसल निगम के एक इंजीनियर ने कैमिकल में बीई की डिग्री हासिल की और काम सिविल का कर रहे हैं और तो और साहब गार्डन में जाकर आराम भी फरमा रहे हैं।

अब खबरीलाल की माने तो साहब को गार्डन की देखरेख का भी प्रभार मिला हुआ है। जिसकी वजह से साहब गार्डन के लगभग 60 श्रमिकों को इंटरटेंट करते हैं। उनकी काबिलियत यही नहीं रुकती, वे वाटर सप्लाई के लिए 92 श्रमिकों को भी इंटरटेंट करते हैं।

मतलब साहब की सरकारी नौकरी और गरीबी रेखा का लाभ, मैकनिकल इंजीनियर…सिविल का काम उसके बाद भी लगभग 2 सौ लेबरों को इंटरटेंट कर सभी को नकद भुगतान! मतलब साहब के इस कैमिकल लोचा की शहर में हर तरफ चर्चा है! वैसे निगम के गलियारों में सुना जा रहा है कि साहब को एक पानी वाले अधिकारी खेल खेला रहे हैं। उनका उल्टे सीधे जगह में उपयोग कर खुद माल कमा रहे हैं। खैर सही भी है वो कहते हैं न जब ऊपर वाला मेहरबान तो… पहलवान..!

कारनामे काले हैं तो क्या हुआ पैसे वाले हैं…

गुमनाम फ़िल्म का ये गाना ” हम काले है तो क्या हुआ दिलवाले है”  ऊर्जानगरी के कोल माफिया और खाकी के खिलाड़ियों पर सटीक बैठ रहा है। हालांकि इस गाने को दूसरे अंदाज में ” हम काले कारोबारी हैं तो क्या हुआ..शहर के पैसे वाले हैं” गुनगुना रहे हैं। अब बात अगर खाकी के खिलाड़ियों की जाए तो वे भी कम नहीं है।

अब पिछले सप्ताह की घटना पर गौर करें तो एक अवैध कोयला लोड ट्रेलर को कुसमुंडा पुलिस ने पकड़ा था,तो कोयला लोड ट्रेलर को पकड़ने के बाद भी बांकी थानेदार ने छोड़ा था। यही नहीं पाली में पकड़े गए अवैध कोयला की गाड़ी के संचालक को कार्यवाही के नाम पर वन अफसर ने भी खूब मरोड़ा था। वैसे तो काले हीरे के कारोबार के लिए खाकी के साथ खादी भी लाइन में लगे हैं और अवैध कामों को पिछले वर्ष की तर्ज पर शुरू करवाने का दबाव बना रहे हैं। लेकिन, दबाव सेंट्रल एजेंसियों की वजह से बन नहीं पा रहा है।

हालांकि इसका स्थानीय स्तर पर पुलिस ने तोड़ निकालते हुए काले हीरे के कारोबार को संचालित कर रहे हैं। जिसका जीता जागता उदाहरण कुसमुण्डा में जब्त हुआ कोयला, पाली के बुड़बुड़ कोल माइंस से जब्त हुई अवैध काले हीरे की गाड़ी और करतला में माइनिंग की दबिश है। ये बात अलग है खनिज तस्कर हर जगह अपना मोहरा फिट करने में कामयाब रहते है और पकड़े जाने के बाद भी काले हीरे से काला धन बटोर रहे हैं।

 

नेता जी को गुस्सा क्यों आता है…

रामपुर विधायक और पूर्व गृहमंत्री ननकी राम कंवर सीधे सादे नेता हैं। अपनी बात मुखर होकर रखने की वजह से कभी कभी वे गुस्से में आ जाते हैं। और उनकी सीधी बात टेढ़े लोगों को हजम नहीं होती।

अब कोरकोमा की आमसभा में ननकीराम को गुस्सा आ गया….सीधे सीधे अपनी बात रख दी…बोल पड़ें.आदिवासी के घर दारू पकड़ने पुलिस जाती है तो उन्हें पीटें..। उनकी ये बात उस संदर्भ में थी जिसमें आदिवासियों को महुआ शराब बनाकर पीने की छूट सरकार की ओर से मिली हुई है। फिर आबकारी विभाग वाले आदिवासियों को ही निशाना क्यों बनाते हैं।

बैठे बैठाए उन्होंने नेता प्रतिपक्ष को भी सलाह दे डाली कि वो इस मामले को विधानसभा में उठाते क्यों नहीं….। अब इसका जवाब तो वही दे सकते हैं। लेकिन इतना तय है जब जब भी भाजपा के सीधेसादे नेता ननकीराम को गुस्सा आता है तो फिर वो आसानी से मानने को तैयार नहीं होते।

राजधानी में पोस्टर वॉर

छत्तीसगढ़ में एसटी आरक्षण को लेकर बवाल मचा हुआ है। पहले विधानसभा में कांग्रेस, बीजेपी आमने सामने आए और अब मामला राजभवन में लटका हुआ है। राजभवन और सरकार के बीच सवाल जवाब चल रहा है।

आरक्षण का ये विवाद अब सदन से निकलकर सड़कों पर पहुंच गया है। राजधानी रायपुर में पोस्टर वार शुरु हो गया है। शहर के प्रमुख स्थानों पर लगे इन पोस्टर को कांग्रेस लोगों की नाराजगी बता रही है और भाजपा पर इस विधेयक पर हस्ताक्षर करने से राज्यपाल पर दबाव बनाने का आरोप लगा रही है।

विधानसभा का शीतकालीन सत्र 2 जनवरी से शुरु होने जा रहा है। सत्र में एसटी आरक्षण का मुद्दा गरमाने वाला है। लेकिन, सदन से बाहर जिस तरीके पोस्टर वार चल रहा है उससे साफ है कि विवाद आसानी से सुलटने वाला नहीं है।

     ✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

Related Articles

Back to top button