कटाक्ष

The mine became Chaucer:खदान बना चौसर,बड़े बे.आबरू होकर दो पेटी का नज़राना लक्ष्मी गणेश चला मास्टर स्ट्रोक..

खदान बना चौसर, बिछ रही गोटियां…

चित भी हमारी पट भी हमारी और… मेरे बाप की तरह खदान में डीजल चोरी का खेल शुरू हो रहा है। डीजल के कारोबार से जुड़े पंडितों की माने तो खदान को यदि चौसर मान लिया जाए तो मास्टर मांइड गैम्बलर की कोई कमी नहीं है। यह वह बिसात है जिसमें जो जितनी अधिक चालें चल लेता है उसकी ही बल्ले बल्ले है।

चाल चलने वालों में न केवल खाकी है बल्कि प्रशासनिक नुमाइंदे से लेकर राजनीतिक गलियारों से आने वाले कद्दावर गुर्गे भी शामिल हैं। इस बिसात में न जानें कितनी चालें चली जा चुकी हैं। याद कीजिये वो दौर जब डीजल चोर के सरगना को गोली कांड में गोवा से पकड़कर लाई थी और सड़कों पर घुमाया था। तब हड़कंप की आंधी के साथ कारोबार को बंद कर दिया गया था,लेकिन समय के साथ एक बार फिर कारोबार करने बिसात बिछाया जा रहा है।

कहते आदमी का नेचर और सिग्नेचर चेंज नहीं होता सो अवैध डीजल की कमाई की लत जिसको एक बार लग गई वो कहाँ चुप बैठने वाला है। तो जनाब खेला शुरू हो गया है सब अपने आप को वजीर के किरदार में देखना चाहते हैं।

अब देखना यह होगा​ कि यह खेल किस ओर रुख करता है। जिस वजीर को चोर ठहरा कर खाकी वर्दी ने चारों ओर घुमाया था अब उसी का सहारा लेकर फिर से स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है। किरदार अपनी अपनी भूमिका में सामने आने लगे हैं।

ये तो ऐसा खेल है चाहे गोली चले या गाली अपने हिस्से के लिए सभी एक दूसरे को छकाने के प्रयास में लगे रहेंगे।

बड़े बे.आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

बड़े बे.आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले… बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले। शायर की यह पंक्तियां शिक्षा विभाग के पूर्व महाराज पर सटीक बैठती हैं। महाराज ने माल कमाया और शिक्षा व्यवस्था को गर्त में डाल दिया। महाराज के माइंड गेम को कोई समझ पाता कि वे डीएमएफ से करोड़ों डकार गए।

उनके दिमाग की उपज से ही स्कूली छात्रों को अंडा खिलाने की योजना सोन चिरई बनी औऱ अंडे का जो लॉजिक छात्रों को तंदरूस्त बनाने का था वो तो बदला नहीं पर महाराज के मार्जिन में बड़ा इजाफा हुआ। महाराज को लगा की वाह! यहां तो बड़े बकवास लोग रहते हैं फिर क्या एक के बाद एक स्कीमें लांच करते गए और डीएमएफ को डंप करते गए।

पुराने कलेक्टरी के मैडम का साथ रहा और दोनों साथ साथ विकास किया। एक ने हॉस्पिटल में पैसा लगया तो दूसरे ने करीबियों के यहां छुपाया। अब जब प्रदेश में सेंट्रल एजेंसी आई तो उन्हें भी जांच की डर सता रहा। खैर महाराज खनिज से तेल निकालने की टेक्निक से इतने पारंगत थे की बेज्जत होने के बाद भी कुर्सी नहीं छोड़ रहे थे। उनकी करीबी कहे जाने वाले पंडितों की माने तो साहब ट्रांफसर रुकवाने प्रदेश के कद्दावर लोगों से हाथ मिलाया था और कमाई का हिस्सा भी फिक्स कर दिया था।

यही वजह है पिछले कार्यकाल की जांच की जाए तो कोयले की लेवी से वसूली गई राशि से बड़ा घोटाला उजागर होगा। हालांकि महाराज बेमन से कोरबा से निकले और गुनगुनाते रहे “बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।

दिवाली और दो पेटी का नज़राना

खुशियों के त्योहार दिवाली में गिफ्ट लेन देन तो चलता है, पर जंगल विभाग में रेंजरों से गिफ्ट के नाम पर दो पेटी का नजराना वसूला गया। खबरीलाल की माने तो कोरबा डिवीजन में हर रेंज के रेंजरों से दो पेटी का नजराना उच्च अधिकारी को दिया गया है।
ये पहली बार नहीं है जब रेंजरों से कलेक्शन किया गया है। बात अगर कटघोरा डिवीजन की करें तो वहां भी रेंजरों से नजराना वसूला गया है। हां ये बात अलग है वहाँ के रेंजरों से कम में काम यानी एक पेटी में ही चल गया।

कहा तो यह भी जा रहा है कि दिवाली के नाम पर बेधड़क वसूली पर सेंट्रल एंजेसी की नजर है। केंद्र सरकार से जारी कैम्पा मद की जिस कदर बंदरबांट हुई हुई है उसकी जांच तो होना ही है। हां ये बात अलग है कि इस जांच में मोटे माल कमाने वाले फंस रहे हैं या छोटे!

फिलहाल दिवाली के नजराने पर सबकी नजर है। नजर रहे भी क्यों न क्योंकि रेंजर ही तो घूम घूम कर अपना दुखड़ा सुना रहे हैं और कह रहे हैं जिस अंदाज में हर बार वसूली हो रही है उससे तो नौकरी करना मुश्किल हो गया है।

खैर रोना तो रेंजरों का काम ही हैं कहा भी तो गया है “रोने से रोजगार बढ़े और… !

केजरीवाल और लक्ष्मी गणेश

सोनम गुप्ता सच में बेवफ़ा है? देश में जब नोट बंदी हुई तो उस समय मीडिया और सोशल प्लेटफार्म में यही सवाल सभी की जुबान पर थे, अब नोट पर लक्ष्मी देवी और गणेश भगवान की फोटो को लेकर बहस चल रही है।

आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल ने ये सवाल उठा कर एक बार फिर आम आदमी को इस सवाल में उलझा दिया है। इस बार आम आदमी ही नहीं नेता भी उलझे हुए हैं। रोज बयानबाजी हो रही है!

कांग्रेस को इस बात का दर्द है कि नोट पर केवल गांधी की तस्वीर होनी चाहिए। दरअसल कांग्रेस के लिए गांधी का नाम उनकी नेतागिरी के सवाल से जुड़ा है, अगर गांधी नहीं तो उनका क्या होगा! उनका मानना है कि नोट पर केवल गांधीजी की ही तस्वीर हो और किसी की तस्वीर उन्हें मंजूर नहीं, आखिर वो ‘गांधीवादी’ लोग हैं।

अब कांग्रेस को कोई कैसे समझाए कि केजरीवाल आम आदमी पार्टी के नेता है, वो केवल आम आदमी के बारे में सोचते हैं, और आम आदमी को केवल नोट से मतलब हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उस पर किसकी तस्वीर छपी है। आम आदमी को मालूम है कि नोट मिल गए तो लक्ष्मी अपने पास उनके पास आ जाएगी, फिर विध्र्नहर्ता गणेश उनके सारे कष्टों को हर लेंगे।

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि केजरीवाल के लक्ष्मी और गणेश वाले ‘वार’ से कांग्रेस कैसे निपटती है, जबकि पंजाब में वो कांग्रेस को आउट कर चुके हैं। अब गुजरात की पारी है। फिलहाल नोटों की उलझन में फंसे आम आदमी सबकी चिंता यही है कि आखिर नोट पर किसी की भी तस्वीर हो वो हैं कहां और कब हाथ लगेंगे।

मंडल सदस्यों के लिए चला मास्टर स्ट्रोक…

सत्ताधारी दल के निगम मंडल के सदस्यों की नियुक्ति में मंझे हुए नेताओं ने मास्टर स्ट्रोक मारकर साबित कर दिया कि बाप बाप होता है। जी हां जिले में कबीरा खड़े बाजार में मांगे सबकी खैर… न कहूँ से दोस्ती न कहूँ से बैर.. वाले नेताजी की निकल पड़ी है। उनके खेमे से नेतागिरी करने वाले जिले दो नेताओं को सदस्य बनाया गया है।

सरकार की आखिरी लिस्ट में सभी की निगाहें टिकी थी कि चलो कम से कम मंडल में सदस्य बनने का मौका मिल तो जाएगा। उन्हें निराशा हाथ लगी, लेकिन जिसे मिला उनकी तो दिवाली और छठ दोनों मन गई। मंडल के सूची आने के बाद चौराहे पर चर्चा हो रही है औऱ कह रहे है सरकार में पावरफुल नेता जी के कैंडिडेट को मौका ही नहीं मिला।

यूं तो राजनीति भी शेयर मार्केट की तरह उछाल मार रहा है। कभी किसी गुट का तो किसी का शेयर के बढ़ रहा है। शनिवार को जारी मंडल सदस्यों की सूची में रूठे नेताओं को मनाने का प्रयास किया गया तो किसी नेताओं को उनकी बखत बता दी!

बात अगर कोरबा जिले की करें तो यहाँ राजनीति का रूवाब दो नेताओं के इर्द गिर्द घूमती है। लिहाज़ा नेताओ के खास समर्थकों को आस थी पर मिलना तो किसी एक को ही था सो किसी को खुशी और किसी को कम मिला।

    ✍️ अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

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