
थानेदारो का गाना ,आधी हकीकत आधा फसाना,
एक दौर था जब पॉवर सिटी कोरबा में थानेदारों की तूती बोलती थी। ये वो दौर था जब सर्वे भवन्तु सुखिनः की शैली पर सबके साथ सबका विकास होता रहा। एक आज का दौर है जब खाकी के जाबांजों के फूंक- फूंक कर पांव रखने के बाउजूद छवि खराब हो रही है। एक के बाद एक पुलिस की छवि पर लग रहे दाग से पॉवर सिटी में निरीक्षकों के सितारे गर्दिश में नजर आ रहे हैं।
अब देखिए ना पहले दर्री थाना में पुलिस हिरासत में हुए मौत पर बवाल मचा। जैसे तैसे पुलिस की छवि साफ हुई तो शहर के बीच मर्डर से पब्लिक का विश्वास खाकी से फिर डगमगाने लगा। पाली खदान के भीतर हुए मर्डर ने तो पुलिस की फजीहत ही करा डाली।
हालांकि बड़े साहब ने शान्त रहकर फिर से लॉ एंड ऑर्डर का पाठ पढ़ाया और थानेदार को लाइन में भेज दिया। अब एक असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर ने घूंस लेते धरे गए। इसने तो साहब के सारे मैनेज सिस्टम को फेल कर दिया।
वैसे तो जनमानस के बीच चर्चा जोर पकड़ी है कि साहब भले ही कड़क मिजाज के हैं लेकिन, सब काम शांति से चला रहे हैं। पुलिस महकमे में आधी हकीकत आधा फसाना..वाला गाना बज रहा है। पता नहीं पॉवर सिटी में निरीक्षकों के अच्छे दिन कब लौटेंगे। ये कैसे होगा आपको पता मिले तो हमें भी बताना।
हाई सिक्योरिटी में सेटिंग से काले हीरे की लूट
कहने को तो कोल माइंस की सिक्योरिटी इतनी टाइट है कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता। इसके बाद भी डीजल चोर रात में कोयला निकालकर खदान में शोर मचा रहे हैं। सूत्रों की माने कोल माफिया प्रबंधन के नुमाइंदों को सेट कर काले हीरे की तस्करी कर रहे हैं। कहने को तो सूबे में सरकार बदलने के बाद कोयले की चोरी बंद हो चुकी है। मगर बीते दिनों खदान के भीतर हुए गैंगवार ने लोगो की आशंका को सत्य सिद्ध करने के लिए एक बड़ा आधार दे दिया है।
कोयला खदान में चल रही लूट पर वर्षो पुरानी आई फिल्म ” अमर प्रेम” का गाना “चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाए , सावन जब आग लगाए तो उसे कौन बुझाए !!“… सटीक बैठता है। क्योकि, इसी शैली में कोयला खदान की सुरक्षा व्यवस्था भी नजर आ रही है जहां सुरक्षा के सिपहसालार चोरो के यार बन रहे हैं।
जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो भला उस संपत्ति की सुरक्षा की कल्पना कैसे की जा सकती है? कहा तो यह भी जा रहा है कि कोयला खदान तो है ही “माल.ए.मुफ्त दिल.ए. बेरहम” जो कोई भी आ रहा है लूट कर जा रहा है और लूटे भी क्यों न क्योंकि नेता, अफसरों के लिए खदान अब खुला खजाना बन गया है।
अधिकारियों की संपत्ति बन रही हो तो तो फिर भला उन्हें कोयले की दलाली में कैसी आपत्ति !! सुरक्षा गार्ड ठहरे कठपुतली, जैसे प्रबंधन का आदेश वैसे ही उनके बंदूक का मूवमेंट। बहरहाल हाई सिक्योरिटी के बाद भी कोयले की लूट जारी है और सब एक दूसरे पर दोषारोपण कर अपने कर्तव्यों इतिश्री कर बचने का प्रयास कर रहे है। तभी तो कहावत है चोर चोर मौसेरे भाई …. !
आग राख और उस्ताद
“जली को आग और बुझी को राख कहते हैं और इस राख से जो ग्रामीणों के जीवन से खेल कर जाए उसे उस्ताद कहते हैं..” अब तो आप समझ ही गए होंगे। जी हां ये डायलॉग मूवी विश्वनाथ का नहीं बल्कि एनटीपीसी प्रबंधन का है।
बात एनटीपीसी राखड़ डेम धनरास की है। 16 सौ की आबादी वाले इस गांव में गुजर बसर करने वाले लोग राख खाते, पीते और राख में जीते हैं..और अंततः राख में राख बन स्वर्गीय हो जाते हैं ! देश को प्रकाशित करने वाले थर्मल पॉवर प्लांट से निकलने वाले कोयले की राख से बड़े बड़े घाव देकर प्रबंधन ग्रामीणों के जीवन से लगातार खिलवाड़ कर रहा है।
असल में प्रबन्धन के तथाकथित प्रतिनिधियों ने ग्रामीणों की आर्थिक विवशता को भुनाने हर चीज की कीमत तय कर रखा है .. कोयले की राख खाने के लिए एक परिवार के लोगों को औसतन 10 दिन का मुआवजा देता है।सामाजिक कार्यक्रम वाले दिन राख उड़ने पर 15 हजार की क्षतिपूर्ति राशि अलग से।
ये अलग बात है कि कोयले की राख से होने वाली बीमारी के लिए मिल रहा भाव भी कभी कभी अभाव पैदा कर जाता है। यहाँ के हवा में खुल रहे जहर धनरास वालो के सांस पर भारी पड़ रहा है। गांव की दुर्दशा पर पर्यावरणविद फ़िल्म गमन के धुन “इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है..” पर सुन्न हो जाते है।
समाधान पेटी का समाधान
विष्णुदेव सरकार अपने डेढ़ साल के कार्यकाल में 4 चुनाव और निगम मंडलों में नियुक्ति कर पहली फुर्सत पा गई, अब सुशासन का दौर शुरु होना है। राजनीति की पाठशाला में बीजेपी के नेता पास हो गए और निकाय चुनावों में पार्टी का कब्जा है। यहां तक सब ठीकठाक है मगर अब आगे सुशासन की पाठशाला में अफसरों के इंतहान होना है।
विष्णुदेव सरकार कल से सुशासन तिहार मनाने जा रही है..जिसमें जनता की परेशानियों का निराकरण किया जाना है और इसके लिए पंचायत की चौपालों पर समाधान पेटी रखी जा रही है। जिन्हें परेशानी है वो इस समाधान पेटी में अपनी समस्या लिखकर डाल सकते हैं। इसी समाधान पेटी को लेकर अफसरों में बड़ी चर्चा है। पता नहीं पर्ची पर किसका नाम लिखा हो..।
अभी तक मलाईदार विभागों में पोस्टिंग पाने के लिए बागेश्वरधाम वाली पर्ची से काम बन जाता था। इस पर्ची में अफसरों को थोड़ी राहत बागेश्वरधाम की पर्ची में उन्हीं का नाम निकलता था जिन्होंने अर्जी लगाई होती थी। मगर समाधान पेटी से निकलने वाली पर्ची किस अफसर की कुंडली निकलेगी इसका पता तो पं धीरेंद्र शास्त्री भी नहीं बता सकते।
खबरीलाल की मानें तो कुछ पुराने और घाघ टाइप के अधिकारी अपने मातहत बाबूओं को फिट इंडिया की तर्ज पर समाधान पेटी की समस्या का समाधान ढूढ़ने में लगा दिया है। कहने का मतलब है कोई भी पेटी हो उनकी पर्ची नहीं निकलनी चाहिए..यानि समाधान पेटी का समाधान हर हाल में चाहिए.. अब आगे क्या होगा ये पर्ची निकलने पर ही पता चलेगा।
एक दो तीन,मंत्री बनने गिन रहे दिन…
1..2..3 का मतलब है जब कोई काम पूरा होना होता है तो गिनती गिनी जाती है 1..2..3 और फुर्र…। नहीं समझे तो इसे ऐसे समझे 7..8..9 यानि इन तीन दिनों में विष्णुदेव सरकार के कैबिनेट विस्तार की पूरी तैयारी है। पिछले सप्ताह निगम मंडलों की सूची जारी हो चुकी है। जिन्हें पद दिया जाना था उसकी सूची पहले से तैयार थी..अब कैबिनेट का विस्तार में किसे मंत्री बनाना है और किसे नहीं इसकी सूची भी तैयार है.. बस ऐलान होना बाकी है।
पहले जब निगम मंडलों की सूची जारी हुई तो कई लोग इस सूची को सही और सच मानने को तैयार नहीं हो रहे थे..घंटों फोन से कंफर्म करने के बाद ये खबर मीडिया में चलनी शुरु की भाई सूची सही है..और इन्हें ही राजयोग के लिए चुना गया है।
असल में निगम मंडलों लालबत्ती पाने वालों में कई बड़े चेहरों को जगह नहीं मिली…इसी लिए सूची को कंफर्म करने में लोगों को काफी मेहनत करनी पड़ी। जिन लोगों के नाम सूची में शामिल थे..वो भी कंफर्म नहीं हो पा रहे थे कि सूची सच में जारी हुई या किसी ने शरारत कर डाली।
अब कैबिनेट का विस्तार में पुराने और सीनियर विधायकों को जगह मिलती है या नए चेहरों को इसका पता 7..8..9 को मिल जाएगा। अगर ये तारीख भी टली तो फिर मई के बाद ही कैबिनेट विस्तार की बात दोबारा से पटरी पर लौटेगी। तब तक गिनती गिनते रहिए…।